Tuesday, October 25, 2011

अपने गुरुजनों को सादर समर्पित



गुरुजन अपने कितने प्यारे,
ब्रह्मा विष्णु शिवा हमारे,
खुद जलकर जीना सिखलाते,
जीवन राह दिखाने वाले,
मात पिता और सखा हमारे
गुरुजन अपने कितने प्यारे।

गुरु बिन ज्ञान नहीं मिलता रे,
ग्रन्थ पड़े रहते हैं सारे,
गुरु हमारे ज्ञान दीप हैं,
अन्धकार काटे हैं सारे।

सारे वन की कलम बनाकर,
सागर जल को बना के स्याही,
धरती को कागज करके भी,
गुरुगुन लिखते दुनिया हारी।

Sunday, April 10, 2011

मन की व्यथा



मन की व्यथा कहूं मैं किससे, कोई न अपना मीत यहां।
मन पंछी पिंजड़े के भीतर, इसे सुकूं अब मिले कहां।

मीठे फल के फेर में पड़ के, कर बैठा बस इतनी भूल।
समझ न पाया इस दुनिया को, यहां तो सब है सेमल फूल।

जब आया पिंजड़े के भीतर, आजादी को तब जाना।
जेल की चुपड़ी रोटी से, अच्छा है भूखे मर जाना।

एक बार का मरना अच्छा, आजादी का वरण करो।
पराधीन सपनेहुं सुख नाही, आज इसे स्मरण करो।

मानव बन मानव का बैरी, दिल पर चोट बहुत है करता।
यही सोच मैं बैठा हूं के, ऊपर वाला न्याय है करता।

सरी चोट सहूंगा दिल पे, घाव एक न दिखलाऊंगा।
मलिक तू सब देख रहा है, और किसी से न गाऊंगा।

ईश्वर तेरी लाठी में आवाज नहीं पर चोट बड़ी है।
इंतजार मैं करूंगा स्वामी, विषम घड़ी अब आन पड़ी है।

चित्र marypages.com से साभार

Thursday, January 13, 2011

एक दूजे के लिए हम बने थे नहीं


एक दूजे के लिए हम बने थे नहीं,
फिर भी प्यारा हमारा ये साथ रहा।
खुशियां बांटी हैं जीवन की मिलके सभी,
और दुख में भी तुम्हारा साथ रहा।

ये पता था हमें मिल सकेंगे नही,
फिर भी प्यारा सा इक एहसास रहा।
कच्ची डोरी से हम तुम बंधे ही नहीं
फिर भी बंधन का इक एहसास रहा।

दिल के रिश्ते हैं जो खुद ही जुड़ जाते हैं,
किसी बंधन का इनमें न भास रहा।
प्यार की डोर होती है पावन बड़ी,
इसकी मर्यादा का हमको भास रहा।

यादें दिल में बसी हैं रहेंगी सदा,
चाह कर भी न इनको भुला पाउंगा।
है यहीं मुझको ऐ मेरे प्यारे सनम,
होगे तनहाई में तो मैं याद आऊंगा।

जिन्दगी का सफर है ये लम्बा मगर
प्यार की यादों में ही गुजर जायेगा।
खुश रहो मेरे हमदम ओ मेरे सनम
दिल दुआ देगा हरदम ये दोहरायेगा।