Friday, May 8, 2020

Winners Never Quit Quitters Never Win


अखंड भारत पब्लिक स्कूल। जी हां यह वही विद्यालय है जिसने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को आधार बनाया और इसके छात्र देश ही नहीं वरन विदेशों में भी अपनी सर्वोच्च सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। इस विद्यालय ने अपनी स्थापना के 50 वर्ष पूरे कर लिए गए हैं जिस के उपलक्ष्य में स्वर्णिम जयंती समारोह का आयोजन किया जा रहा है। समारोह में देश-विदेश से हजारों की संख्या में पुरा छात्र एवं उनके परिवार एकत्रित हुए हैं जिसकी शोभा देखते ही बनती है। वैसे तो स्वर्णिम जयंती समारोह के उपलक्ष में अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है किंतु आज का कार्यक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज का कार्यक्रम पूर्णतया सैन्य सेवाओं को समर्पित है।

आपको बताते चलें कि इस विद्यालय में जितने छात्र विभिन्न सेवा में दिए हैं उससे कहीं ज्यादा छात्र रक्षा सेवाओं में अधिकारी के रूप में दिए हैं। यही कारण है कि आज का 1 दिन का कार्यक्रम रक्षा सेवाओं को समर्पित करते हुए आयोजित किया गया है आज का आयोजन अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रमों के अनुसार ही संचालित हो रहा है। तभी अचानक भारत के थल सेना अध्यक्ष की ओर से एक संदेश प्राप्त हुआ है (जो स्वयं भी इस विद्यालय के पूरा छात्र हैं और कार्यक्रम में उपस्थित भी हैं) जिसके अनुसार कार्यक्रम में थोड़ा फेरबदल करना पड़ रहा है। थल सेना अध्यक्ष के निर्देशानुसार एक विशेष सभा का आयोजन किया जाना है जिसमें उनके बैच के एक पूरा छात्र विशेष सभा में समस्त वर्तमान छात्रों को संबोधित करेंगे। यह कार्यक्रम पूर्व में निर्धारित नहीं था इसलिए विद्यालय प्रशासन ऊहापोह की स्थिति में आ गया कि यह अचानक से ऐसा कार्यक्रम रखने की क्या आवश्यकता पड़ गई।

बहरहाल निर्देशानुसार निश्चित समय पर विशेष सभा का आयोजन किया गया। स्वयं थल सेनाध्यक्ष ने मुख्य वक्ता का परिचय सभा में उपस्थित समस्त सदस्यों को कराया। हालांकि उनके द्वारा कराया गया परिचय मुख्य वक्ता के हाव भाव से किसी भी तरह से मेल नहीं खाता था। थल सेना अध्यक्ष जी ने परिचय कराते हुए बताया कि श्री रमेश कुमार जी मुख्य वक्ता उनके समय के विद्यालय कप्तान रह चुके हैं साथ ही साथ पढ़ाई तथा अन्य शैक्षणिक गतिविधियों में भी अव्वल दर्जे के विद्यार्थी रहे हैं। क्योंकि आज का कार्यक्रम सैन्य अधिकारियों को समर्पित था इसलिए एक गैर सैन्य व्यक्ति का उद्बोधन कार्यक्रम के बीच में रखना किसी के गले नहीं उतर रहा था। सेनाध्यक्ष के द्वारा परिचय के उपरांत मुख्य वक्ता ने अपना वक्तव्य देना शुरू किया।

Winners never quit Quitters never win.
इन शब्दों के साथ श्री रमेश कुमार जी ने लड़खड़ाती आवाज में अपना उद्बोधन प्रारंभ किया। 

मेरी समझ में नहीं आता कि कहां से शुरू करूं। उन दिनों कक्षा ग्यारहवीं के बाद एनडीए में एंट्री हो जाया करती थी मैं अपने अन्य साथियों के साथ अपने प्रथम प्रयास में ही सफल रहा और एनडीए ज्वाइन किया। अपने विद्यालय में मैं हर क्षेत्र में अव्वल रहा आया था किंतु एनडीए पहुंचकर मुझे ज्ञान हुआ कि दुनिया वीरों से खाली नहीं है NDA में पूरे भारत के सर्वश्रेष्ठ छात्र प्रवेश प्राप्त करते हैं उन छात्रों को देखकर मैं धीरे-धीरे हीन भावना का शिकार होने लगा क्योंकि मैं सदैव अव्वल ही आना चाहता था जिसके लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता होती है एनडीए पहुंचकर मैंने यह मान लिया कि मेरे जीवन का लक्ष्य पूरा हो गया है और अब मुझे आगे और मेहनत करने की आवश्यकता नहीं है यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित हुई। धीरे-धीरे मैं अपने अन्य साथियों से पिछड़ने लगा और हीन भावना मेरे अंदर घर करती गई। यह हीन भावना मेरे अंदर इतने गहरे में समा गई कि 1 दिन मैंने एनडीए छोड़ने का निश्चय कर लिया। मेरे इंस्ट्रक्टर ने मुझे बहुत समझाया और बहुत मौके दिए कि मैं अपने विचार को बदल दूं लेकिन मैं अपनी जिद पर अड़ा रहा और अंत में अपने माता पिता के सपनों को तिलांजलि देते हुए एनडीए छोड़ दिया। घर आकर मैंने अपने पिता से इंजीनियरिंग करने की इच्छा जाहिर की वैसे तो मेरे पिताजी एक मध्यम परिवार से आते थे किंतु उन्होंने आज तक मेरी हर इच्छा का सम्मान किया था और उन्होंने इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए मुझे सहर्ष अनुमति दे दी । इंजीनियरिंग में दाखिले के बाद मैंने देखा ऐसे बहुत से छात्र मुझे वहां मिले जो मुझसे जूनियर हुआ करते थे और वे आज मुझसे सीनियर है। फिर मेरे मन का भगोड़ा जाग उठा और मैंने इंजीनियरिंग भी छोड़ने का निश्चय कर लिया । किंतु इस बार मेरे पिता की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह मुझे खुले मन से सहयोग कर पाते उन्होंने मुझे बार-बार कहा कि बेटा केवल कुछ वर्षों की ही बात है पढ़ाई पूरी कर ले फिर जो करना होगा कर लेना। लेकिन मैंने एक न सुनी। 

समय हमेशा एक सा नहीं रहता। कुछ ही समय में पिताजी की मृत्यु हो गई।  पिताजी के मृत्यु के पश्चात घर की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई। उसी समय मुझे पता चला कि पिताजी ने अपनी समस्त पूंजी मेरी पढ़ाई पर खर्च कर दी थी जो कुछ बची कुची पूंजी थी जब मैंने एनडीए छोड़ी तो वहां के सारे खर्चे भरने में उन्हें जमा करनी पड़ी । उसके बाद मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ा जिसकी भरपाई भी आजीवन करते रहे और अंत में स्वर्ग सिधार गए । उनके स्वर्ग सिधारने के बाद मेरे ऊपर जिम्मेदारियों का पहाड़ टूट पड़ा। अब मैं चाह कर के भी समय को वापस नहीं ला सकता था। मैं सोचने लगा काश मैंने एनडीए न छोड़ा होता । काश मैंने इंजीनियरिंग ही कर लिया होता। लेकिन अब तो समय बीत चुका था । 

मैं इधर-उधर छोटी मोटी नौकरियों की तलाश में भटकने लगा लेकिन कहीं पर कुछ काम नहीं मिला और समय बड़ी कठिनाई से बीतने लगा। उस जमाने में तो आज के जैसे व्हाट्सएप फेसबुक सोशल मीडिया जैसी चीजें नहीं थी इसलिए मैं पूरी तरह से अज्ञातवास में चला गया। जैसे तैसे मुझे एक बैंक में छोटे से क्लर्क की नौकरी मिल गई और मेरा गुजारा चलने लगा लेकिन मेरे दोस्त हमेशा मेरे बारे में चिंतित रहा करते थे वह मुझसे संपर्क करना चाहते थे लेकिन मैं किसी ना किसी बहाने से उनसे बचने की ही कोशिश किया करता था मेरे अंदर की हीन भावना मुझे उनका सामना करने का साहस नहीं देती थी।

 किंतु आज जब विद्यालय का 50 वां स्थापना दिवस का समारोह था तो माननीय थल सेना अध्यक्ष जी ने मुझसे कहा की तुम्हारा अनुभव हमारे भावी छात्रों के लिए एक मार्गदर्शन का कार्य करेगा। मुझे भी लगा कि मैंने अपना जीवन व्यर्थ ही नष्ट कर दिया। हो सकता है कि मैं किसी बच्चे के भविष्य को बनाने के किसी काम आ सकूं। बस इतनी सी मेरी कहानी है और यही बताने के लिए मैं यहां आया था। मेरा सभी बच्चों को यही संदेश है कि हमें इस विद्यालय तक पहुंचाने में हमारे मां-बाप ने अथक परिश्रम किया है। उनके सपने पूरे करने की जिम्मेदारी हम सब की है। वह हमसे कुछ उम्मीद नहीं करते वह केवल हमारी सफलता देखना चाहते हैं । इसलिए मैं आप सबको यही समझाना चाहता हूं कि आप जीवन के लक्ष्य से कभी भी ना भटके। मैंने जो भूले की है वह आप अपने जीवन में कभी न करें मैंने अपने माता पिता के सपनों को चकनाचूर कर दिया जिसका दुख मुझे पूरे जीवन में रहेगा जिसकी भरपाई मैं चाह कर भी कभी नहीं कर सकूंगा लेकिन मैं चाहूंगा कि आप अपने जीवन में कभी भी ऐसी गलती ना करें और मेरा मूल मंत्र आप नोट करने की। Winners never quit Quitters never win.

रमेश कुमार जी के उद्बोधन के पश्चात सभा का समापन हुआ सभी छात्रों ने अपने मन में निश्चय कर लिया कि वे जहां तक संभव हो सके अपने माता पिता के सपनों को साकार करने की पूरी कोशिश करेंगे और साथ ही उन्होंने अपना मूल मंत्र बना लिया की Winners never quit Quitters never win.

Thursday, May 7, 2020

नो कास्ट नो रिलीजन नो गॉड No Cast No Religion No God

''नो कास्ट नो रिलीजन नो गॉड''

दो युवाओं के द्वारा ''नो कास्ट नो रिलीजन नो गॉड'' की मुहिम को आगे बढ़ाने की सराहना की जानी चाहिए।  इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ हद तक हम समाज में व्याप्त जातिगत धर्मगत एवं पंथगत मतभेदों को मिटा सकेंगे, किंतु क्या वास्तव में यह ऐसा ही है जैसा सुनने में लगता है । 

पहले चर्चा करते हैं नो कास्ट पर । हिंदू मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जाति व्यवस्था ऋग्वेद कालीन है । वर्ण शब्द 'वृ' धातु से बना है जिसका तात्पर्य होता है वरण करना । प्रारंभ में यह व्यवस्था कर्म आधारित थी किंतु कालांतर में यह जन्म आधारित हो गई जो कि इस व्यवस्था का विकृत रूप कहा जा सकता है। अब यदि हम अपने दैनिक जीवन में विचार करें तो हम पाएंगे कि हम सभी अपने जीवन में वरण या वर्ग विभाजन करते हैं और हर वस्तु एवं व्यक्ति को वर्णों में विभक्त करते हैं यथा दोस्त, दुश्मन, अमीर, गरीब, रोजगार वाला, बेरोजगार, व्यापारी, भिखारी, राजनीतिक, वैज्ञानिक, अधिकारी, अधिवक्ता, शिक्षक, छात्र आदि आदि । विदेशों में भी हमें टेलर , वुड्समैन पेंटर आदि सरनेम देखने को मिलते हैं । और तो और जब हम अपने पहनने के लिए कपड़े खरीदते हैं तब भी उनका वर्ण विभाजन करते हैं , यथा यह समारोह वाला , यह रोज पहनने वाला, यह कार्यालय जाने वाला आदि । वर्ण व्यवस्था का विस्तृत स्वरूप हमें विज्ञान के क्षेत्र में आवर्त सारणी एवं जंतु वर्गीकरण के रूप में भी दिखाई देता है।

अब नो रिलिजन की चर्चा करते हैं।  हिंदू शास्त्रों के अनुसार जो धारण करने योग्य है वही धर्म है । यह धर्म की बहुत व्यापक परिभाषा है जो यह बताती है कि हम अपने जीवन में क्या धारण करते हैं । इस परिभाषा के अनुसार धर्म केवल मंदिर में जाकर यज्ञ अनुष्ठान करना नहीं है , वरन हर वह कार्य है जिसे हम संकल्प रूप में अपने जीवन में धारण करते हैं । धर्म का संबंध केवल पूजा पद्धति ना होकर हर वह क्रिया है जो किसी मत के अनुसार करणीय है । इस मान्यता के आधार पर हम यह भी कह सकते हैं कि हम यदि किसी धर्म को ना माने फिर भी हम धर्म विमुख न रह सकेंगे क्योंकि हर व्यक्ति जिस पेशे से जुड़ा है उस पेशे के सभी करणीय कार्य उसके धर्म का निर्माण करते हैं जैसे छात्र का छात्र धर्म , मानव का मानवता धर्म और तो और डॉक्टर ,वकील ,अभियंता ,अधिकारी ,पुलिस, कर्मचारी और सैनिक आदि का भी एक धर्म होता है जिसकी मर्यादा में रहकर उन्हे कार्य करना पड़ता है।

अब आते हैं अंतिम बिंदु यानी नो गॉड पर।  अनेक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ईश्वर को नियंता के रूप में स्वीकार किया गया है जो इस संपूर्ण चराचर जगत का नियंत्रण करता है एवं संसार की समस्त शक्तियां ईश्वर द्वारा संचालित होती हैं। विश्व का एक वर्ग ऐसा भी है जो ईश्वर में बिल्कुल विश्वास नहीं करता फिर भी अपने जीवन की समस्त गतिविधियों को उसी प्रकार संचालित करता है जैसे एक आस्तिक व्यक्ति करता है। स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी ने तो नास्तिक को सबसे बड़ा आस्तिक माना है क्योंकि उसकी नास्तिकता में अटूट श्रद्धा होती है । ईश्वर को मानना या ना मानना किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अंग हो सकता है किंतु प्रायः देखा जाता है कि हर व्यक्ति किसी न किसी व्यक्ति को अपने आदर्श के रूप में स्वीकार करता है जिसके जैसा वह स्वयं बनना चाहता है और इसीलिए वह उसका अनुकरण भी करता है । यही धारणा ईश्वर का भी निर्माण करती है, ऐसा कहा जा सकता है । किंतु जब इस धारणा में अंधविश्वास, अंधानुकरण एवं अंधश्रद्धा का बोलबाला हो जाता है , तो व्यक्ति केवल अपनी ही सुनता है और अपनी ही बात सभी लोगों से मनवाना भी चाहता है और यही विकृत रूप ग्रहण कर लेती है और समाज के लिए घातक सिद्ध होती है।

सारांश रूप में हम यह कह सकते हैं कि इन दोनों युवाओं का प्रयास सराहनीय है किंतु हजारों वर्षों के अनुभव एवं ज्ञान को एक झटके में तिलांजलि दे देना क्या हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए न्याय संगत एवं हितकारी होगा इस पर भी विचार किया जाना आवश्यक है। समय की मांग है कि हम जागरूक बने एवं समाज के हर व्यक्ति को जागरूक करें, जिससे कि एक ऐसे समाज का निर्माण हो सके जिसमें हर व्यक्ति को व्यक्ति की गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार मिल सके।

Wednesday, May 6, 2020

फेक न्यूज़ क्या है ।। What is Fake News

Fake News

फेक न्यूज़ एक अंग्रेजी शब्द है जिसका हिंदी अनुवाद झूठी खबरें या मिथ्या समाचार है। संकुचित अर्थों में फेक न्यूज़ के अंतर्गत वह खबर सम्मिलित की जाती है जो कि सत्य नहीं है, किंतु इसके व्यापक अर्थ के अंतर्गत अनेक चीजों को सम्मिलित किया जा सकता है, जैसे तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करना, एकांगी दृष्टि से रिपोर्टिंग करना, तथ्यों की गहराई में ना जाना, बिना पुष्टि के आनन फानन में समाचार को आगे बढ़ा देना ।

यदि हम फेक न्यूज़ की उत्पत्ति पर प्रकाश डालें तो हमें यह ज्ञात होगा कि फेक न्यूज़ का चलन कोई नया नहीं है, वरन् यह बहुत ही पुराना है। राजा महाराजा के जमाने से चल रहा फेक न्यूज़ का धंधा प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध तक आते-आते बहुत व्यापक रूप में सामने आया। फेक न्यूज़ या प्रोपेगेंडा का इस्तेमाल द्वितीय विश्व युद्ध में तकनीकी विकास के साथ राज्य प्रायोजित हुआ और खूब फला फूला ।

जैसे-जैसे संचार क्रांति का युग आया एक न्यूज़ के फैलने की गति भी बहुत तेज होती गई । पुराने समय में कोई फेक न्यूज़ अपनी धीमी रफ्तार के कारण जहां एक सीमित क्षेत्र को ही प्रभावित कर पाती थी , वहीं यह आज पूरे देश एवं विश्व को प्रभावित करने की क्षमता रखती है।

एक सच्चे पत्रकार का नैतिक दायित्व है कि वह तटस्थ रहकर किसी खबर की हर दृष्टि से पड़ताल करें, समाचार की पुष्टि होने पर ही उसे आगे बढ़ाएं, जरा भी संदेह होने या विश्वस्त सूत्रों से पुष्टि न होने पर उसे आगे ना बढ़ाएं ।

वर्तमान समय सोशल मीडिया का युग है और इस समय ऐसे बहुत से माध्यम है जिसमें कोई भी व्यक्ति, जो कि प्रशिक्षित संवाददाता नहीं है, कहीं से भी कोई भी खबर सार्वजनिक कर सकता है। कभी-कभी यह फेक न्यूज़ किसी व्यक्ति, उत्पाद, समाज, धर्म , संप्रदाय, मान्यता आदि को निशाना बनाकर वायरल की जाती है, जिनके अत्यंत घातक परिणाम समाज को देखने को मिलते हैं । आज के समय में अनेक राजनीतिक पार्टियां अपना प्रचार एवं दूसरी पार्टी का दुष्प्रचार करने के लिए बाकायदा आईटी सेल का गठन कर प्रायोजित कार्यक्रम चला रही है।  इसी क्रम में एक देश दूसरे देश के विरुद्ध ऐसे कार्यक्रमों का संचालन कर रहे हैं जो कि पत्रकारिता के मानदंडों के बिल्कुल विपरीत है।

 आज के इंटरनेट के युग में किसी भी सूचना की सत्यता की पड़ताल करना अब उतना मुश्किल नहीं रह गया है, जितना कि पहले हुआ करता था। अतः सारांश रूप में यह कहा जा सकता है कि हम चाहे पत्रकार हों या आम नागरिक, हमारे पास आने वाली हर खबर को तभी आगे भेजें जब उसकी विश्वसनीयता की पड़ताल अपने स्तर से कर ले।खासतौर से उन खबरों के प्रति अत्यंत सचेत रहने की आवश्यकता है जो हमारे समाज एवं देश को तोड़ने का कार्य कर सकती हैं।