एक समय हुआ करता था जब कि हम किसी से परिचय प्राप्त करते समय उससे पूंछा करते थे कि आप किस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं तो उसके जवाब के लिए उसके पास केवल दो विकल्प ही होते थे या तो वह कहता था कि वह सरकारी क्षेत्र में काम करता है या कहता था कि प्राइवेट सेक्टर में काम करता है। परन्तु आज के तकनीकी युग में जिस प्रकार से नयी-नयी तकनीकियों का आविष्कार हो रहा है उसी तरह से इन क्षेत्रों में भी एक नये क्षेत्र का भी उद्भव पिछले कुछ वषों में हुआ है, और उस नये क्षेत्र के कर्मचारी हैं- सरकारी क्षेत्र के असरकारी कर्मचारी। चौंकिये नहीं! यह असरकारी शब्द सरकारी क्षेत्र के प्रभावशाली कर्मचारियों की श्रेणी नहीं है बल्कि यह उन कर्मचारियों की श्रेणी है जो अ-सरकारी हैं और सरकारी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।
जिन लोगों का सरकारी कार्यालयों से दूर-दूर तक नाता नहीं होगा उन्हें शायद मेरी बात पर आश्चर्य भी हो रहा होगा कि वास्तव में कर्मचारियों की ऐसी भी श्रेणी हो सकती है, लेकिन वे लोग जो सरकारी कार्यालयों से सम्बन्धित हैं वे इन नयी श्रेणी के कर्मचारियों से भली-भांति परिचित होंगे। असरकारी कर्मचारी जैसा कि इनके नाम से ही पता चलता है कि ये सरकारी नहीं होते अत: इनकी नियुक्ति, उपस्थिति, भुगतान, कार्य की शर्तें आदि किसी सरकारी कागज पर लिखित रूप में नहीं होती हैं वरन् इन्हें आपसी समझ-बूझ के आधार पर नियुक्त कर लिया जाता है, और ये नियोक्ता के प्रसाद पर्यन्त अपनी सेवाएं प्रदान करते रहते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि जब सरकारी क्षेत्र में कर्मचारियों की संख्या इतनी अधिक है कि सरकार को समय से वेतन देने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो फिर इस तरह के कर्मचारियों का क्या औचित्य। इन असरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति के कारणों के रूप में आज की तकनीकी और खास-तौर पर कम्प्यूटर को दोष दिया जा रहा है।
सरकार ने असरकारी क्षेत्र को देखते हुए विचार किया कि यदि सरकारी कार्यालयों में कम्प्यूटर मुहैया करा दिया जाय तो ई-गवर्नमेंट की राह आसान हो जायेगी और सरकारी कामकाज के ढर्रे में भी सुधार आयेगा तथा समय से सूचनाएं शासन के पास उपलब्ध रहेंगी। बस सरकार ने आव देखा न ताव धड़ाधड़ कम्प्यूटर खरीदे जाने लगे और सरकारी कार्यालयों में स्थापित किये जाने लगे। लेकिन सरकार से यहीं चूक हो गयी। सरकार सरकारी कर्मचारियों को या तो प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं करा सकी, या तो प्रशिक्षण केवल कागजों पर ही संचालित होते रहे, या तो प्रभावी नियंत्रण के अभाव के कारण कर्मचारियों ने प्रशिक्षण में कोई रूचि नहीं ली। फलस्वरूप कर्मचारियों को प्रमाणपत्र तो मिल गया और उस प्रमाणपत्र के साथ उन्हें मिलने वाला टंकण भत्ता अब कम्प्यूटर भत्ता में भी बदल गया किन्तु वे आज भी अपने को कप्यूटर निरक्षर ही बताते हैं। फलस्वरूप कम्प्यूटर या तो डिब्बे में ही बन्द रहे, या अधिकारियों के बच्चों के लिए उनके घरों में चोरी छिपे स्थापित कर दिये गये या फिर जरूरत महसूस की जाने लगी कि किसी असरकारी व्यक्ति की सेवाएं ली जाएं।
असरकारी कर्मचारियों की उत्पत्ति में यह मान लिया जाय कि सरकारी कर्मचारियों ने कम्प्यूटर प्रशिक्षण नहीं लिया इसलिए असरकारी कर्मचारी इस क्षेत्र में आये तो यह भी पूर्णतया सत्य नहीं है। आजकल विभागों में विभागाध्यक्षों में सत्य की शक्ति न होने के कारण उनका अधीनस्थों पर प्रभावी नियंत्रण नहीं रहा। उसका परिणाम यह हुआ कि आज के विभागाध्यक्ष अपने अधीनस्थों को कड़ाई से कम्प्यूटर के प्रयोग के लिए बाध्य नहीं कर सके। प्रभावी नियंत्रण का अभाव न होने के कारण वे सरकारी कर्मचारी जो कम्प्यूटर के प्रति खासा उत्साहित थे अन्तत: वे हार गये और उन्होंने धीरे धीरे अपने को तकनीकी निरक्षर साबित करने में ही भलाई समझी। आप सोच रहे होंगे कि जो व्यक्ति एक बार कम्प्यूटर पर काम कर ले वह कम्प्यूटर के मोह से कैसे बच सकता है, यानि कि वह अपने को कम्प्यूटर निरक्षर भला क्यों कर साबित करेगा। इसका कारण मैं आपको समझाता हूं। श्रीमान क जो कि एक सरकारी कर्मचारी हैं, ने अपने अन्य सहयोगियों के साथ ही कम्प्यूटर प्रशिक्षण प्राप्त किया, चूंकि वे कम्प्यूटर के आने से व्यवस्था में होने वाले बदलाव के प्रति खासे उत्साहित थे इसलिए उन्होंने प्रशिक्षण को बड़ी निष्ठा व लगन से पूर्ण किया। प्रशिक्षण के बाद श्रीमान क ने अपना कार्यालयीय काम कम्प्यूटर पर करना प्रारम्भ कर दिया जबकि उनके अन्य साथी कर्मचारी या तो कम्प्यूटर पर गेम खेलते या इस तलाश में रहते कि श्रीमान क थोड़ा सा खाली हों तो उनका काम भी निपटा दें। शुरू में श्रीमान क ने यह सोचते हुए कि ये कम सीख पाये हैं इसलिए मदद करने की भावना से उनके कामों को निपटाते रहे। धीरे-धीरे उनके साथी कर्मचारियों ने श्रीमान क के इस नेक इरादे का फायदा उठाते हुए, इसे अपना हक समझ लिया। अब श्रीमान क की स्थिति यह हो चुकी थी कि उनके अन्य साथी उनके अधिकारी के समान उन्हें काम सौंप कर चाय पीने चले जाते और श्रीमान क घण्टों बैठकर दूसरों के काम निपटाते। यह स्थिति बहुत ही निराश करने वाली होती है कि आप जिस व्यक्ति के लिए परेशान हो रहे हों वह कहीं बाहर जाकर चाय पी रहा हो या कस्टमर सेट कर रहा हो। अन्तत: श्रीमान क ने इस तरह काम करने से हाथ खड़े कर लिये। साथी कर्मचारी जो कि पहले बड़ी मीठी-मीठी बातें किया करते थे अब उन्हें घमण्डी, लोभी और न जाने किन-किन सम्बोधनों से सम्बोधित करने लगे। अगर बात यहीं तक सीमित होती तब भी गनीमत थी। श्रीमान क के अपने काम तक ही सीमित रह जाने के कारण या अतिव्यस्तता के कारण अन्य साथी कर्मचारियों के कार्य में बाधा पहुंचने लगी। जब अधिकारी ने सम्बन्धित को फटकार लगाई तो उनसे अपने आप को निर्दोष बताते हुए कहा कि साहब क्या करें श्रीमान क कुछ काम हीं नहीं करना चाह रहे हैं हमेशा फाइलें लटकाये रखते हैं न जाने क्या चाहते हैं? ऐसी शिकायत कई लोगों से मिलने के बाद एक दिन श्रीमान क को अधिकारी के सामने पेश किया गया और उस दिन अधिकारी के द्वारा उनके कम्प्यूटर प्रशिक्षण और उनके कम्प्यूटर के प्रति उत्साह का जो परिणाम मिला कि श्रीमान क ने अपने को कम्प्यूटर निरक्षर मान लेने में ही भलाई समझी। अधिकारी के द्वारा साथी कर्मचारियों को कम्प्यूटर पर कार्य करने के लिए बाध्य करने के बजाय श्रीमान क को फटकार लगाना क्या उचित है? क्या यह श्रीमान क के काम के प्रति निष्ठा को प्रभावित नहीं करता? यह कहां तक उचित है कि श्रीमान क को केवल इस बात के दण्डस्वरूप कि वे कम्प्यूटर साक्षर हैं और कुशल कम्प्यूटर संचालक हैं, वे अपने काम के साथ साथ अन्य साथी कर्मचारियों का काम भी अकेले ही करें? बेहतर तो तब होता जब अधिकारी अन्य साथियों से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए कह देता। कुछ वर्ष पहले जब बैंकों का कम्प्यूटरीकृत हुआ था तो बहुत से कर्मचारी ऐसे थे जो कि कुछ ही वर्षों में सेवानिवृत्त होने वाले थे वे नये सिस्टम में काम नहीं करना चाहते थे लेकिन बैंक ने क्या किया? या तो काम करो या तो सेवानिवृत्ति ले लो। बस फिर क्या था सारे कर्मचारी कम्प्यूटर पर काम करने लगे और आज कर्मचारी भी नयी तकनीकी के प्रयोग से खुश है और ग्राहक भी संतुष्ट हैं। देश को कोषागारों का कम्प्यूटरीकृत किया जाना अपने-आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है और प्रभावी नियंत्रण का एक नायाब नमूना भी। साथी ही यह उनके सवालों का भी जवाब है जो कि कहते हैं कि सरकारी क्षेत्र में नयी व्यवस्थाएं लागू ही नहीं हो सकती।
इन सरकारी क्षेत्र के असरकारी कर्मचारियों से जुड़ी बहुत सी बातें मेरे मन में आ रही हैं लेकिन उन सबको एक की पोस्ट में डाल देना उचित नहीं प्रतीत हो रहा है। इस पोस्ट में हमने उनके उत्पत्ति के कारणों में से कुछ पर विचार किया। आगे हम उनके उद्भव एवं विकास के साथ साथ उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर भी विचार करेंगे।
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