Thursday, August 25, 2022

राखी की राखी // कहानी // Rakhi Ki Rakhi // Story on Rakshabandhan

राखी की राखी // कहानी // Rakhi Ki Rakhi // Story on Rakshabandhan 

राखी के पिताजी सेना में हैं तो तबादले तो होते ही रहते हैं। लेकिन इस बार का तबादला बीच सत्र में हुआ है। राखी कक्षा छठवीं में है और राखी का आज स्‍कूल में पहला दिन था। घर लौटने पर मॉं ने पूछा, ''कैसा लगा स्‍कूल।'' राखी ने बताया, ''बहुत अच्‍छा रहा और मेरे तो नये दोस्‍त भी बन गये हैं। मॉं पता है मेरी कक्षा में एक लडका है उसका नाम स्‍वतन्‍त्र है। जैसे तुमने मेरा नाम राखी इसलिए रखा क्‍योंकि मैं रक्षाबन्‍धन के दिन पैदा हुई थी उसी तरह उसके मम्‍मी-पापा ने स्‍वतन्‍त्रता दिवस के दिन पैदा होने के कारण उसका नाम स्‍वतन्‍त्र रख दिया है। है न संयोग की बात। पता है मॉं स्‍वतन्‍त्र की कोई बहन नहीं है। इसलिए वह दुखी था कि रक्षाबन्‍धन पर उसे कोई राखी नहीं बांधेगा। मैंने भी कह दिया कि अब मैं आ गयी हूँ तो इस बार तुम्‍हारी कलाई सूनी नहीं रहेगी। मैं बांधूंगी तुम्‍हारी कलाई पर राखी।'' मॉं मुस्‍कुराई और बोली, ''लेकिन रक्षाबन्‍धन के दिन तो स्‍कूल में छुट्टी रहेगी''। राखी ने कहा, ''तो क्‍या हुआ, मैं एक दिन पहले ही राखी बॉंध दूँगी।'' मॉं ने कहा, ''बडी होशियार है मेरी बि‍टिया''। राखी स्‍वभाव से बडी बातूनी है साथ ही वह बहुत ही जल्‍दी सबसे घुलमिल जाती है। यही कारण है कि स्‍कूल के पहले दिन ही उसने ढेर सारे दोस्‍त बना लिये थे।

राखी ने मॉं को सुबह से ही तैयारियॉं करते हुए देखा तो बोली, ''मॉं क्‍या फिर से पापा का ट्रान्‍सफर हो गया है जो तुम सुबह से तैयारियॉं कर रही हो।'' मॉं ने कहा, ''अरे नहीं पगली, आज तेरी नानी का फोन आया था और इस बार हम रक्षाबन्‍धन पर नानी के घर जायेंगे।'' नानी के घर का नाम सुनकर राखी उछल पडी, ''नानी के घर''। लेकिन फिर एकाएक सोच में पड गयी। मॉं ने कहा, ''क्‍या हुआ, किस सोच में पड गयी।'' राखी ने कहा, ''मॉं अभी तो रक्षाबन्‍धन में तीन दिन बाकी हैं, फिर अभी से क्‍यों जाना''। मॉं ने बताया, ''ट्रेन में आज का ही रिजर्वेशन मिल पाया है उसके बाद सीट खाली नहीं है इसलिए हमें आज ही निकलना होगा।'' राखी ने उदास होते हुए कहा, ''मॉं फिर मैं स्‍वतन्‍त्र को राखी कैसे बांध पाऊंगी, इस साल भी उसकी कलाई सूनी रहेगी, मैंने कहा था कि इस साल मैं उसे राखी बॉंधूंगी''। मॉं ने मुस्‍कुराते हुए कहा, ''मैंने सारा इन्‍तजाम कर लिया है, मैं कल ही बाजार से मिठाई और राखी लाई हूँ। हमारी ट्रेन आज शाम में है, तुम आज स्‍कूल जाना और स्‍वतन्‍त्र को राखी बांध देना, अब खुश।'' राखी खुशी से उछल पडी और माँ के गले से लिपट गयी।

स्‍कूल से लौटने पर राखी का चेहरा उतरा हुआ था। मॉं को समझने में देर न लगी कि आज स्‍कूल में कुछ गडबड हुई है। मॉं ने राखी से पूछा, ''क्‍या हुआ मेरी लाडो, आज बडी उदास लग रही है''। राखी ने रुआसे होते हुए मॉं से कहा, ''मॉं स्‍वतन्‍त्र से मुझसे राखी नहीं बंधवाई। मैं उससे बार बार कहती रही लेकिन न जाने क्‍यों उसने मेरी एक न सुनी। कक्षा से सारे बच्‍चे मेरा मजाक भी बना रहे थे। ऐसा क्‍यों हुआ मॉं। उसी ने बताया था कि उसके बहन नहीं है तभी तो मैं उसके लिए राखी लेकर गयी थी''। मॉं ने राखी का हाथ प्‍यार से थामते हुए कहा, ''बस इतनी सी बात से दुखी है मेरी प्‍यारी बिटिया। तुझे दुखी होने की क्‍या जरूरत है। भगवान ने तो तुझे भाई दिया है न। रक्षाबन्‍धन के दिन तू उसे राखी बॉंध देना। अरे पगली, दुखी तो वो हो जिसके बहन नहीं है और उसने तेरी राखी ठुकराई है। चल फटाफट तैयार हो जा हमारी ट्रेन का समय हो रहा है।''

सभी नानी के घर पहुँच गये थे। वहॉं पहुँचने पर राखी को पता चला कि नानी के घर वृन्‍दावन से बहुत बडे महात्‍मा आये हुए हैं और वे श्रीमदभागवत की कथा सुना रहे हैं। कथा के बीच बीच में संगीत और नृत्‍य भी होता था साथ ही वे कथा के अन्‍त में साधकों की शंकाओं का समाधान भी करते हैं। राखी बडे ध्‍यान से प्रतिदिन की कथा सुनती थी और एक दिन उसके मन में आया कि क्‍यों न वह भी अपनी शंका का समाधान स्‍वामी जी से ही पूछे। बस फिर क्‍या था जैसे ही स्‍वामी जी ने साधकों की ओर शंका के समाधान हेतु इशारा किया राखी फट से खडी हुई और सारा वृतान्‍त कह सुनाया। स्‍वामीजी ने कहा, ''मनुष्‍य के पूर्वजन्‍म के कर्मों के अनुसार ही उसके इस जन्‍म में सुख-दुख का भोग करना पडता है। अगर उसने तुमसे राखी नहीं बंधवाई तो यह उसका दुर्भाग्‍य है क्‍योंकि उसके पूर्वजन्‍म के कृत्‍यों के कारण ही उसे इस जन्‍म में बहन नहीं मिली और अगर वह तुमसे राखी बंधवा लेता तो उसके पाप कट जाते किन्‍तु ऐसा न करके उसने अपना ही नुकसान किया है। दुखी तो उसे होना चाहिए, तू दुखी क्‍यों होती है। जो प्रारब्‍ध में लिखा होता है वह होकर ही रहता है। इस बात का पछतावा उसे पूरी जिन्‍दगी रहेगा।'' राखी ने स्‍वामी जी के चरणों में प्रणाम किया किन्‍तु उसका बालमन अभी भी समझ नहीं पा रहा था कि अगर स्‍वतन्‍त्र उससे राखी बंधवा ही लेता तो उसका क्‍या बिगड जाता।

शाम को राखी ने वही सवाल अपने मामाजी से पूछा। मामाजी ने राखी को समझाया, ''हर व्‍यक्ति का मनोवैज्ञानिक स्‍तर एक सा नहीं होता है। इस कारण से उसके निर्णय भी एक से नहीं होते हैं। कुछ व्‍यक्ति अपने लिये हुए निर्णय पर कायम रहते हैं और कुछ अपना निर्णय बार बार बदलते रहते हैं। इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं जिनमें से एक कारण है नयी जिम्‍मेदारी से भागना। कुछ लोग उत्‍साह में आकर किसी बात के लिए हामी तो भर लेते हैं किन्‍तु जब उस बात को पूरा करने का समय आता है तो उन्‍हें अहसास होता है कि उनके गले एक नयी जिम्‍मेदारी पडने वाली है, चूंकि उनका मन अन्‍दर से मजबूत नहीं होता है इसलिए वे नयी जिम्‍मेदारी से बचने के लिए अपने निर्णय तत्‍काल बदल देते हैं। ऐसे व्‍यक्ति मन के पक्‍के नहीं होते हैं और इन पर कभी भी विश्‍वास नहीं किया जा सकता। इस तरह के व्‍यक्ति जीवन में कभी भी बडा कार्य नहीं कर सकते। ये हमेशा दूसरों की प्रगति की शिकायत करते रहते हैं और अपनी नाकामी का ठीकरा किसी अन्‍य के सिर पर फोडने में तत्‍पर रहते हैं।'' राखी की समझ में ज्‍यादा कुछ तो नहीं आया फिर भी उसने हॉं में सिर हिलाया। 

एक फौजी के घर में होली, दिवाली, दशहरा, ईद आदि पर्व उसी दिन होता है जिस दिन उसका फौजी घर वापस आता है और आज राखी के पिताजी घर आने वाले थे। पूरे घर में तैयारियां चल रही थी। नजरें बार बार द्वार की ओर जा रही थी। किसी भी वाहन की आवाज से बच्‍चे खिडकी से झॉंकते कि कहीं पिताजी तो नहीं आ गये। पिताजी के आने पर राखी उनसे लिपट गयी। पिताजी ने प्‍यार से बच्‍ची को अपनी गोदी में उठाकर लाड किया। राखी ने अपने बातूनी लहजे में जो बातें करना शुरू किया तो देश-विदेश का सारा हाल कह सुनाया। मॉं ने कहा, ''राखी बस बातें ही करती रहेगी या पापा को पानी-वानी भी पीने देगी।'' राखी ने कहा, '' ओह ओ। बातों बातों में मैं तो भूल ही गयी। मैं अभी लायी।'' पिताजी के जलपान करने के बाद राखी से न रहा गया और उसने पिताजी के सामने अपनी समस्‍या रख दी। पिताजी कुछ देर सोचते रहे कि इस छोटी बच्‍ची को वे दुनियादारी की किताब किस भाषा में समझायें। वह कैसे बतायें कि समाज में विकृतियॉं किस स्‍तर तक बढ गयी हैं जहॉं भैया या बहनजी बोलने को लोग अन्‍यथा लेते हैं। ऐसे वातावरण में कोई राखी बंधवाने की हिमाकत करके भला अपने आपको पिछडा हुआ क्‍यों दिखायेगा। उन्‍हें आज भी याद है अपने बचपन का समय जब उनके गॉंव के आस पास के दस-बारह गॉंवों में उनकी बहन, दीदी, बुआ आदि के घर हुआ करते थे। हालांकि वे सब उनके अपने परिवार की न थी। वरन् उनके गॉंव की होने के नाते से बहन, दीदी, बुआ आदि लगती थी। लेकिन जब कभी भी उन गॉंवों से होकर गुजरना होता था तो वे उनके गॉंव जरूर जाते और फिर उतनी ही आत्‍मीयता से  प्रेम व्‍यवहार होता था जैसे कोई अपने सगे भाई-भतीजों का करता है। खैर अब समय बदल चुका है पुरानी परम्‍परायें कमजोर हो रही हैं। समाज पर अपसंस्‍कृति का बोलबाला बढ रहा है। बच्‍चे जो कुछ टीवी / मोबाइल पर देख रहे हैं उसी से ज्‍यादा सीख रहे हैं। ऐसा हो भी क्‍यों न। बच्‍चे अब एकल परिवार का हिस्‍सा बन कर रह गये हैं इस कारण से उन्‍हें संयुक्‍त परिवार एवं सम्‍पूर्ण ग्राम-परिवार की परम्‍परा का परिचय ही नहीं है। 

''पापा कहॉं खो गये'', राखी ने कहा। राखी ने जैसे पिताजी को नींद से जगाया। पिताजी को पता था कि जबतक राखी को उसके सवालों के जवाब न मिलेंगे तब तक वो चुप बैठने वाली नहीं है। पिताजी ने राखी से कहा, ''तुम्‍हारे सारे सवालों के जवाब एक जादुई किताब में लिखा है। उस किताब का नाम है श्रीमद्भगवद्गीता''। राखी ने कहा, ''वो तो पूजा करने की किताब है। आप मुझे उल्‍लू बना रहे हैं। जब तक मेरे सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे मैं आपको नहीं छोडने वाली।'' पिताजी ने कहा, ''श्रीमद्भगवद्गीता केवल पूजा की पुस्‍तक नहीं है, वह जीवन जीने की कला सिखलाने वाली पुस्‍तक है''। ''फिर वह हमेशा पूजाघर में क्‍यों रखी रहती है'' राखी ने सवाल दागा। पिताजी ने समझाया, ''वह पुस्‍तक हमारे जीवन में उतना ही महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखती है जितना महत्‍व हम ईश्‍वर को देते हैं इसलिए ही उसे पूजाघर में स्‍थान दिया जाता है।'' राखी दौड के गयी और श्रीमद्भगवद्गीता लाकर पिताजी को दिया। पिताजी ने पुस्‍तक खोलकर राखी को समझाया, ''यह देखो इसमें लिखा है कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।। अथात् तेरा कर्म में ही अधिकार है ज्ञाननिष्ठामें नहीं। वहाँ ( कर्ममार्गमें ) कर्म करते हुए तेरा फल में कभी अधिकार न हो अर्थात् तुझे किसी भी अवस्थामें कर्मफल की इच्छा नहीं होनी चाहिये। यदि कर्मफल में तेरी तृष्णा होगी तो तू कर्मफलप्राप्ति का कारण होगा। अतः इस प्रकार कर्मफल प्राप्ति का कारण तू मत बन। क्योंकि जब मनुष्य कर्मफल की कामना से प्रेरित होकर कर्म में प्रवृत्त होता है तब वह कर्मफलरूप पुनर्जन्म का हेतु बन ही जाता है। यदि कर्मफल की इच्छा न करें तो दुःखरूप कर्म करने की क्या आवश्यकता है इस प्रकार कर्म न करने में भी तेरी आसक्ति प्रीति नहीं होनी चाहिये।'' पिताजी को समझते देर न लगी कि इतनी गूढ बाते राखी की अवस्‍था के अनुरूप नहीं है। उन्‍होंने कहा, ''इसे ऐसे समझो, ईश्‍वर ने हमें इस धरती पर अच्‍छे कार्य करने के लिए भेजा है। हमें अपना सर्वोत्‍तम प्रदर्शन करते रहना चाहिए। हमें यह नहीं देखना चाहिए कि उस कर्म के बदले में हमें क्‍या मिल रहा है। तुमने स्‍वतन्‍त्र को राखी बांधने को बहुत ही अच्‍छा निर्णय लिया किन्‍तु अगर उसने तुमसे राखी नहीं बंधवाई तो यह उसका दुर्भाग्‍य है। तुम्‍हें इसमें चिन्‍ता करने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। तुमने अच्‍छा कार्य किया और आगे भी करते रहना बिना इसकी परवाह किये कि तुम्‍हें बदले में क्‍या मिल रहा है।'' राखी ने पूछा, ''पापा इस पुस्‍तक में और क्‍या क्‍या लिखा है''। पिताजी को समझते देर न लगी कि राखी की ज्ञान-पिपासा अभी शान्‍त नहीं हुई है। उन्‍होंने कहा, ''इस पुस्‍तक में जीवन में आने वाली हर समस्‍या का समाधान लिखा हुआ है। जब आप कुछ बडी हो जायेंगी तो आपको यह पुस्‍तक मार्गदर्शन करायेगी।'' राखी ने पूछा, ''पापा आप तो बडे हो गये हैं, तो क्‍या ये पुस्‍तक आपको मार्गदर्शन कराती है''। पिताजी ने उत्‍तर दिया, '' हॉं बेटे''। पिताजी ने अपनी जेब से एक छोटी पुस्‍तक निकालकर दिखाते हुए कहा, ''यह देखो इस पुस्‍तक का छोटा रूप मैं हमेशा अपने साथ रखता हूँ और जहॉं मुझे आवश्‍यकता होती है मैं अपने प्रश्‍नों का उत्‍तर तुरन्‍त ढूढ लेता हूँ।'' 

तभी मॉं की पुकार आती है, ''बाप बेटी का संवाद समाप्‍त हो गया हो तो कुछ आगे का भी काम होना चाहिए। भोजन तैयार हो गया है।'' पिताजी ने कहा, ''राखी बेटे, इसके आगे की बातें हम शाम को करेंगे अब हमें भोजन की तैयारी करनी है।''