बापू और कस्तूरबा सेवाग्राम आश्रम में |
विगत 16 सितम्बर 2010 को मुझे सेवाग्राम आश्रम वर्धा महाराष्ट्र जाने का सुयोग प्राप्त हुआ। मैं अपने को बड़ा भाग्यशाली समझता हूं कि मुझे बापू की कर्मस्थली सेवाग्राम में जाने का अवसर मिला। वहां पहुंच कर ऐसी आत्मीय शांति की अनुभूति हुई कि उसका वर्णन करने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है उसके विषय में केवल इतना कहना ही पर्याप्त है कि 'ज्यो गूंगे मीठे फल को रस अन्तर्गत ही भावे' वही स्थिति मेरी है। वहा पर मैं तो केवल इसलिए गया कि सेवाग्राम आया हूं तो बापू का आश्रम भी घूम ही लेता हूं। लेकिन वहां जाकर पता चला कि यह तो एक परम पावन तीर्थ है जहां प्रत्येक भारतवासी या जो सत्य की तलाश करना चाहते हैं उन्हें कम से कम एक बार तो अवश्य ही आना चाहिए। वहां जाने से पहले मैं बापू को गांधी जी कहता था लेकिन वहां जाकर पता चला कि वे गांधीजी नही थे वरन बापू ही थे। मुझे लगता है कि वहां जाकर मुझे बापू का साक्षात्कार हो गया है हो सकता है ऐसा कुछ न हुआ हो या यह मेरे दिमाग में हुए किसी 'केमिकल लोचा' का परिणाम हो। चाहे जो हो मैं वहां पहुंचकर अपने को धन्य समझता हूं। और मैंने पहली बार बापू को इतने करीब से देखा और जाना। मुझे दुख है कि हमारी शैक्षिक संस्थाएं बच्चों को ऐसे स्थानों पर क्यों भ्रमण नहीं करवाती जहां पर उन्हें सत्य का साक्षात्कार स्वतः ही हो सकता है। मुझे इस बात का भी दुख है कि मैं अब तक इस महापुरुष से इतना अपरिचित कैसे रहा जिसका दुनिया लोहा मानती है। शायद इसका कारण घर की मुर्गी दाल बराबर होना हो। तमाम मलाल, दुख, हर्ष, पश्चाताप और न जाने किन-किन भावों के साथ बापू को समर्पित मेरी कुछ पंक्तियां आपके सम्मुख प्रस्तुत हैं :-
मैं बापू से मिलकर आया, सेवाग्राम के आश्रम में।
देख मुझे वे बहुत खुशी थे, लेकिन हलचल थी मन में।
पास बैठ जब मैंने देखा, दुखी बहुत थे अन्तर्मन में॥
मैंने पूछा बात क्या बापू, कुछ मुझको बतलाओ तो,
ऐसी भूल हुई क्या बापू राह मुझे दिखलाओ तो।
पहले बापू मुस्काए फिर बाले ऐ वत्स मेरे -
प्रयोग पड़ा है अभी अधूरा सत्य पहेली सुलझे ना।
देख रहा मैं बच्चे मेरे सत्य राह से भटके ना।
पहले राह सरल थी लेकिन अब है दुविधा आन पड़ी।
झूठ ने पहना 'सत्य मुखौटा', बनी मुसीबत राह खड़ी।
बच्चे मेरे भटक न जायें, सोच-सोच घबराता हूं।
यही व्यथा मेरे अन्तर्मन में, कोई राह न पाता हूं।
मैं बोला अब बापू मेरे संशय अपना दूर करो।
हृदय 'दिया' है मेरा बापू, इसे तुरत स्वीकार करो।
जोत जला दो इसमें ऐसी प्रतिपल ही मैं जलता जाऊं।
खुद जलकर के इस जग में मैं सत्य पथिक को राह दिखाऊं॥
सत्य पथिक को राह दिखाऊ॥
चित्र ruraluniv.ac.in से साभार