प्यारी बहना, खुश रहना,
सोच के तेरी मधुर विदाई,
क्यों भर आये मेरे नैना?
प्यारी बहना खुश रहना।
जायेगी ससुराल तू प्यारी,
छोड़ के बाबुल का अंगना,
बेटी तो होती पर-धन है,
सब लोगों का है कहना,
जानूं मैं भी यह सब फिर भी,
क्यों भर आये मेरे नैना?
प्यारी बहना खुश रहना।
बाबा की आंखों की पुतली,
मां के जिगर का है अंग-ना!,
गोदी के झूले में झूली,
भूल रहा मुझको वो पल ना,
तुझे बसाना है अपना घर,
क्यों भर आये मेरे नैना?
प्यारी बहना खुश रहना।
Thursday, December 18, 2008
Saturday, November 29, 2008
अनमोल वचन
ज्यों ज्यों अभिमान कम होता है कीर्ति बढती है - यंग
आग आग से नही पानी से शांत होती है - मुंशी प्रेमचंद
किसी कार्य का प्रारम्भ उसका सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है - प्लेटो
आलस्य दरिद्रता की कुंजी है और सारे अवगुणों की जड़ है - स्पर्जन
आलस्य वह राजरोग है जिसका रोगी कभी नही संभलता- मुंशी प्रेमचंद
अभिलाषा तभी फलोत्पादक होती है जब वह दृढ़ निश्चय में परिणित कर दी जाती है - स्वेड मार्डेन
आग आग से नही पानी से शांत होती है - मुंशी प्रेमचंद
किसी कार्य का प्रारम्भ उसका सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है - प्लेटो
आलस्य दरिद्रता की कुंजी है और सारे अवगुणों की जड़ है - स्पर्जन
आलस्य वह राजरोग है जिसका रोगी कभी नही संभलता- मुंशी प्रेमचंद
अभिलाषा तभी फलोत्पादक होती है जब वह दृढ़ निश्चय में परिणित कर दी जाती है - स्वेड मार्डेन
Saturday, November 22, 2008
वो हर मंजिल को मुश्किल समझते है
वो हर मंजिल को मुश्किल समझते है
हम हर मुश्किल को मंजिल समझते है
बड़ा फर्क है उनके और मेरे नजरिये में
वो दिल को दर्द और हम दर्द को दिल समझते है
हम हर मुश्किल को मंजिल समझते है
बड़ा फर्क है उनके और मेरे नजरिये में
वो दिल को दर्द और हम दर्द को दिल समझते है
Monday, November 10, 2008
सुख-दुःख तो तन के संग लगे रहते हैं
है ब्रह्म आत्मा वेद सभी कहते हैं
सुख-दुःख तो तन के संग लगे रहते हैं
ये जिए मरे शरीर दुखों का घर है,
इस घर में चेतन रूप निराला जर है
जर ईश्वर का प्रतिबिम्ब आप ईश्वर है
जब तलक चले ये प्राण तभी तक नर है
ये पञ्च भूत से मिले जुड़े रहते हैं
सुख-दुःख तो तन के संग लगे रहते हैं
इस तन के संग विकार लगा आता है
मन चलाय वान है अचल नही पता है
मन बन जाय और कभी बिगड़ जाता है
मन मरने से ही संत निगम गता है
मन बिना ठिकाने शोक नदी बहते हैं
सुख-दुःख तो तन के संग लगे रहते हैं
रचना - श्री विक्रम सिंह (पु० उपा० ) द्वारा साभार
सुख-दुःख तो तन के संग लगे रहते हैं
ये जिए मरे शरीर दुखों का घर है,
इस घर में चेतन रूप निराला जर है
जर ईश्वर का प्रतिबिम्ब आप ईश्वर है
जब तलक चले ये प्राण तभी तक नर है
ये पञ्च भूत से मिले जुड़े रहते हैं
सुख-दुःख तो तन के संग लगे रहते हैं
इस तन के संग विकार लगा आता है
मन चलाय वान है अचल नही पता है
मन बन जाय और कभी बिगड़ जाता है
मन मरने से ही संत निगम गता है
मन बिना ठिकाने शोक नदी बहते हैं
सुख-दुःख तो तन के संग लगे रहते हैं
रचना - श्री विक्रम सिंह (पु० उपा० ) द्वारा साभार
उठा लो तलवार, लिख दो अपना नाम
उठा लो तलवार, लिख दो अपना नाम
अभी तो है सबेरा कहीं हो जाए न शाम
शिक्षा को आधार बनाकर
मेहनत को तलवार बनाकर
सहस को हथियार बनाकर
अच्छाई को पास बुलाकर
बुराई को दूर भगा कर
दिमाग को तेज रफ्तार का भगाकर
करना होगा कुछ अच्छा कम
अभी तो है सवेरा कहीं हो जाए न शाम
अभी तो है सबेरा कहीं हो जाए न शाम
शिक्षा को आधार बनाकर
मेहनत को तलवार बनाकर
सहस को हथियार बनाकर
अच्छाई को पास बुलाकर
बुराई को दूर भगा कर
दिमाग को तेज रफ्तार का भगाकर
करना होगा कुछ अच्छा कम
अभी तो है सवेरा कहीं हो जाए न शाम
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