होने थे जितने खेल मुकद्दर के हो गये,
हम टूटी नाव ले समन्दर में खो गये,
खुशबू हाथों को छू के गुजर गयी
हम फूल सजा-सजा के पत्थर से हो गये।।
Thursday, July 2, 2009
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मन में अजस्र रूप से प्रवाहित होने वाली विचार-गंगा की कुछ बूंदों को समेटने का एक छोटा सा प्रयास
मन में अजस्र रूप से प्रवाहित होने वाली विचार-गंगा की कुछ बूंदों को समेटने का एक छोटा सा प्रयास
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