गुरुजन अपने कितने प्यारे,
ब्रह्मा विष्णु शिवा हमारे,
खुद जलकर जीना सिखलाते,
जीवन राह दिखाने वाले,
मात पिता और सखा हमारे
गुरुजन अपने कितने प्यारे।
गुरु बिन ज्ञान नहीं मिलता रे,
ग्रन्थ पड़े रहते हैं सारे,
गुरु हमारे ज्ञान दीप हैं,
अन्धकार काटे हैं सारे।
सारे वन की कलम बनाकर,
सागर जल को बना के स्याही,
धरती को कागज करके भी,
गुरुगुन लिखते दुनिया हारी।
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