फिर आया है याद मुझे कि
मैं भी लिख सकता हूं कविता।
नभ-जल-थल-आकाश विषय पर,
जीवन के एहसास, समय पर
भूली बिसरी यादों पर
पूस-माघ और भादों पर
जीवन में जो घटता-बचता
मैं भी लिख सकता हूं कविता।
जीना-मरना, जस-अपजस पर
यति-गत, नीरस और सरस पर
हर्ष-विषाद, सबल-निर्बल पर
हार-जीत और ठोस-तरल पर
शब्द-विलोम से रच दी कविता
मैं भी लिख सकता हूं कविता।
पक्षी-विहग-शकुनि-नभचर पर
दैत्य-दनुज-राक्षस-निशिचर पर
भानु-भास्कर-रवि-दिनकर पर
भंवरा-मधुप-भ्रमर-मधुकर पर
सम-अर्थी शब्दों की कविता
मैं भी लिख सकता हूं कविता।
नृत्य-नाच और अक्षि-आंख पर
पंच-पांच और लक्ष-लाख पर
चन्द्र-चांद और दंत-दांत पर
कर्म-काम और सप्त-सात पर
तत्सम-तद्भव की यह कविता
मैं भी लिख सकता हूं कविता।
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