Thursday, March 19, 2009

मां की डांट से क्षुब्ध बालक ने जान दी



इस तरह की ना जाने कितनी ही खबरें हम आये दिन समाचार पत्रों में पढ़ते रहते हैं। पहले इस तरह की घटनाएं कम होती थी और आज ज्यादा हो रही है ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। ऐसा भी हो सकता है कि पहले इन घटनाओ की जानकारी का क्षेत्र इतना व्यापक न था जितना आज का है। इस हेतु मीडिया के योगदान को नकारा नहीं जा सकता।
मां की डांट क्या इतनी कड़वी हो सकती है कि बालक जान देने पर उतारू हो जाय? पहले मुझे ऐसे पाल्यों पर तरस आता था जो ऐसी हरकत करके ईश्वर का खूबसूरत उपहार जीवन को ठुकराते थे। लेकिन कभी-कभी जीवन में ऐसी परिस्थितियां भी उत्पन्न हो सकती है जबकि हमारा दिमाग काम करना बन्द कर दे और हम गलत कदम उठाने पर मजबूर हो जायें। अक्सर ऐसा होता है कि हम अपने अपनों से आवश्यकता से अधिक की अपेक्षा रखते हैं। यह स्थिति पालक और पाल्य दोनों के साथ होती है। जब मेरी मां ने मुझे खरी-खोटी सुनाई तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे मेरा इस संसार में अब कोई रहा ही नहीं। जब अपनी मां जिसने मुझे जन्म दिया वह ऐसी बातें कह रही है तो ठीक है मैं उससे बहुत दूर चला जाउंगा। शायद वह अकेले ही रहना चाहती हैं तो ले-लें अपना राज-पाट, मुझे नहीं रहना है इनके साथ। दूसरे के मां-बाप अपने बच्चों के लिए क्या-क्या नहीं करते। मैंने कभी कोई नाजायज मांग भी नहीं की। फिर भी मुझे सबके सामने जलील करने का प्रयास किया जा रहा है। शायद मेरी मां मुझसे उब गयी है। यदि यही सच है तो मैं खुद ही उससे दूर चला जाता हूं जिससे कि वह खुश रहे........
इस तरह के न जाने कितने ही विचार एक ही सेकेण्ड के अन्दर मन में आ जाते हैं और दिमाग के सर्वर को डाउन करने पर तुल जाते है, यदि इस समय आपका सर्वर डाउन हो गया यानि की विचार चेतना ने साथ छोड़ दिया तो घर से बहुत-बहुत दूर जाने का विचार मन में आता है और लोग गलत कदम उठाते हैं।
किंतु यदि इसी बात को मां के पक्ष से सोचा जाय तो ..... तो क्या हम इस तरह का निर्णय (घर@दुनिया छोडने का निर्णय) लेते समय उस मां के दर्द का अनुमान लगा पाते हैं, जो कि अपने बच्चे के जन्म के लिए कितने दुख झेलती है, कहा जाता है कि जब एक बच्चा जन्म लेता है तो मां का दूसरा जन्म होता है, जिस मां ने अपने बच्चे को एक-एक पल अपनी आंखों के सामने बढ़ते हुए देखा है यदि बुढ़ापे में उसका बच्चा उससे छीन लिया जाय, या बच्चा उसे छोड़कर चला जाय तो उस मां की स्थिति क्या होती होगी इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता, उसके लिए उस समय तो यही स्थिति होती है कि उसका सर्वस्व लुट गया।
उसका सर्वस्व लुटे तो लुटे मुझे क्या। मुझे तो सारे समाज के सामने उसी ने जलील किया और घर छोड़ने पर मजबूर किया। जब घर छुड़ाया है तो संतानहीन होने का सुख भोगे घर में अकेले रहे।
एक संतानहीन औरत के लिए संतान का न होना सहा जा सकता है किन्तु सन्तान के होते हुए संतान का बिछोह किसी मां के लिए सहनीय नहीं है। वह जीते-जी मर जाती है। लेकिन प्रकृति ने उसे शक्ति दी है जिसके बलबूते पर वह सबकुछ शान्त होकर सारे आरोप प्रत्यारोप अपने उपर लेते हुए चुपचाप सबकुछ सह जाती है।
मां ने बुरा भला कहा, पर क्यों? क्योंकि वह आपसे प्यार नहीं करती। बिल्कुल गलत। वह आपको बहुत चाहती है। अगर आपको कोई तकलीफ होती है तो पहले दर्द मां हो होता है। फिर उसने बुरा भला क्यों कहा? उसने केवल आपकी भलाई के लिए ही अपने कलेजे पर पत्थर रखकर आपको भला-बुरा कहा। मेरी भलाई के लिए, भला वह कैसे? कोई भी मां अपने बच्चे से अलग नहीं रह सकती। लेकिन जब मां देखती है कि घर, परिवार एवं समाज की परिस्थितियां कितनी बदलती जा रही है, ऐसे में यदि आप मां के आंचल (आश्रय) में ही रह गये और खुद अपने आप अपने बारे में विचार करना शुरू न किया तो आने वाले समय में आपको कौन सम्भालेगा (मां के न रहने पर)। वह केवल आपकी खुशी के लिए आपसे दिखावा करती है कि वह आपको नहीं चाहती, वह आपसे खिन्न है, किन्तु उसकी उस समय स्थिति क्या होती है यह एक मां ही समझ सकती है।
मां की डांट में छिपी उसकी भावना की कद्र करना हर संतान का कर्तव्य है। अपनी मां के दुख को समझिये और उसे जीवन भर के लिए दुखी करने वाला कष्ट न दीजिये। आखिर उसने आपको जन्म दिया है और कहा भी गया है कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है। उसके ऋण से कोई भी उऋण नहीं हो सकता।

5 comments:

mark rai said...

achha article.... very sensitive...

bachchon ko samjhaya jaa sakata hai ki maa ka gussa ...kuchh nahi bas pyaar hota hai

sandhyagupta said...

Aapne jo likha hai wo bilkaul satya hai.Agar maa kabhi bura bhala kehta bhi hai to usme hamari hi bhalai chupi hoti hai.

हरकीरत ' हीर' said...

Bhot acchi bhavnayen hain aapki maa ke prati....sadar...!!

shama said...

Haan...behad stabd ho gayee padhke...us maa pe kya guzaree hogee...saaree umr is apraadhbodh tale dabee rahegee.....

shama said...

Himanshunji,
Mere blogpe" Gazab Qaanoon"ke tehet comment kee liye bohot shukrguzaar hun...comeent kya, wo ek behtareen kavy rachana hai...lagtaa hai maano kayiyon ke dilkee gehraayise uthee aawaaz hai..kaash saare bharatwaasi istarahse sochte...!

Kuchh samay poorv likhi apnee teen rachnayen aapke padhneke khatir apne " kavitaa"blog pe post karne jaa rahee hun...padhenge to khushi hogee.
Aur muslim samajke liye to "uniform civil code" laagu hona chahiye...ho sakta tha Rajiv Gandhi ke samay, lekin unhon ne himmat nahee dikhayi..wo aakharee samay tha jab kiseeko nirvivaad majority se (qaanoonan) chunaa gaya tha...uske baad na mauqa aaya na kiseene koshish kee...