जीवन और शिक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। शिक्षा जीवन-पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। आदमी जन्म के पालने से लेकर मृत्यु-शय्या तक शिक्षा ग्रहण करता रहता है। अलग-अलग विद्वानों ने शिक्षा के अलग-अलग विभाग किये हैं किन्तु प्रमुखत: शिक्षा दो तरह की हो सकती है, एक तो औपचारिक जो कि एक पूर्वनिर्धारित योजना के अनुसार निर्धारित पाठ्यक्रम और निर्धारित समय-सीमा के अन्तर्गत दी जाती है, तथा दूसरी अनौपचारिक शिक्षा जिसे कि व्यक्ति कहीं भी किसी से भी कभी भी ग्रहण कर सकता है। जैसे कि एक कहानी में एक पराजित राजा ने मकड़ी से शिक्षा ग्रहण की और अन्तत: विजयी हुआ। यह जो बड़े-बड़े ग्रन्थ हैं जिन्हें बड़े-बड़े विद्वानों ने लिखा है यह भी अनुभवों का संकलन मात्र है जिसका हस्तान्तरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में शिक्षा के माध्यम से होता है। इन ग्रन्थों का प्रयोजन यही होता है कि हमारी आने वाली पीढ़ी को वह दु:ख न सहने पड़ें जो कि अज्ञानतावश उन्होंने सहे हैं। किन्तु वर्तमान में यदि हम अपना अवलोकन करें तो हमारी मानसिकता ऐसी हो गयी है जिसमें हम पुराने अनुभवों से सीख न लेकर उस विषय पर खुद से प्रयोग करके सीखने का प्रयास करते हैं। यह अच्छी बात है किन्तु इसकी हानि भी बहुत है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि इसमें एक तो हमारा कीमती समय बर्बाद होता है साथ ही साथ कभी-कभी हम केवल प्रयोग के उपकरण मात्र बनकर रह जाते हैं या कभी कभी ऐसा भी हो जाता है कि हम एक प्रायोगिक श्रृंखला के सदस्य बनजाने के कारण प्रयोग के बाद अगले प्रयोग में फंसते जाते हैं और अपने जीवन को नष्ट कर देते हैं। इतना सबकुछ जानने के बाद भी हम खुद से प्रयोग करने में ही ज्यादा आस्था रखते हैं।
Friday, May 15, 2009
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