जीवन अनुभव ग्रहण करने की एक प्रक्रिया है। हम जीवन-पर्यन्त अनुभव ग्रहण करते रहते हैं, उनका पुराने अनुभवों से मिलान या मूल्यांकन करते रहते हैं और यदि आवश्यकता पड़ती है तो नये मूल्यों का निर्माण करते हैं। लेकिन अक्सर होता यह है कि हमें कड़वे अनुभवों का ही चर्चायें आमतौर पर सुनने को मिलती हैं, इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि हमें अच्छे अनुभव होते ही नहीं हैं बल्कि इसका कारण यह होता है कि कड़वे अनुभव हमें सीख दे जाते हैं और हमें बताते हैं कि यह अनुभव सहेज कर रख लें जिससे कि हमारी आने वाली पीढ़ी उस दर्द से बची रह सके जिसे हमने झेला है। हम अक्सर अपने कड़वे अनुभव ही आपस में साझा करते हैं इस बात में मुझे बाबा भारती और डाकू खड़गसिंह की पुरानी कहानी याद आती है जिसमें डाकू खड़गसिंह एक बीमार व्यक्ति का भेष धर कर बाबा भारती का प्यारा घोड़ा हथिया लेता है। बाबा भारती के ये कथन कि "घोड़ा तो ले जाओ लेकिन इस बात की चर्चा किसी से न करना, नहीं तो लोगों का दु:खी और असहायों की सहायता करने से विश्वास उठ जायेगा।" इतने असरकारी साबित हुए कि डाकू खड़गसिंह का हृदय परिवर्तित हो गया उसने घोड़ा भी लौटा दिया और भिक्षु बन गया। बाबा भारती के शब्द पर हमें आज के समय में विचार करने की आवश्यकता है। हमें आवश्यकता है कि हम अपने अनुभव साझा करते समय इस बात का भी ख्याल रखें कि इसका क्या परिणाम होगा। कहीं ऐसा न हो कि हमारा यह अनुभव चारो तरफ अविश्वास के ही बीज-वपन करने लगे। हमारे समाचार माध्यमों की खबरों से अक्सर ऐसे "ज्ञान" अथवा "अनुभव" सामने आते हैं जो कि हमें अपने रिश्तों को शक की निगाह से देखने को मजबूर कर देते हैं। क्या ऐसा अनुभव साझा करना हमें एक अच्छे भविष्य की ओर ले जायेगा? अगर बाबा भारती दरवाजे-दरवाजे जाकर अपना दुखड़ा रोते तो उनका घोड़ा तो उन्हें कभी न मिलता लेकिन लोग यह शिक्षा जरूर ग्रहण कर लेते कि कभी किसी गरीब-दुखिया की मदद न करो न जाने कब कौन खड़गसिंह के रूप में सामने आ जाये।
Sunday, May 17, 2009
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1 comments:
आपकी चिंता जायज है। पर इसका मतलब यह भी नहीं कि हम दूसरों के प्रति बिलकुल निष्ठु ही हो जाएं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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