Friday, July 3, 2009

कभी रो के मुस्कुराये कभी मुस्कुरा के रोये,

कभी रो के मुस्कुराये कभी मुस्कुरा के रोये,
याद जितनी आयी, उन्हें भुला के रोये,
एक उनका ही नाम था जिसे हजार बार लिखा,
जितना लिख के खुश हुए, उससे ज्यादा मिटा के रोए।।

1 comments:

hem pandey said...

मतलाब पूरी तरह उसी के ध्यान में रमे हैं- रोने के लिए.