Tuesday, October 5, 2010
कितना प्यार मुझे है तुमसे कैसे तुमको बतलाऊं
कितना प्यार मुझे है तुमसे कैसे तुमको बतलाऊं
हनूमान मैं नहीं प्रिये जो चीर कलेजा दिखलाऊं।
तुमको याद किया करता हूं मैं प्रतिपल आंहें भरता हूं
यकीं दिलाऊ कैसे तुमको प्यार बहुत मैं करता हूं।
होती जब भी बात तुम्हारी छुप-छुप कर मैं सुनता हूं
ना देखूं मैं जिस दिन तुमको पागल सा मैं लगता हूं।
प्रीत की रीत निभाऊं कैसे, मुझे नहीं है कुछ आता
बिन देखे अब चैन नहीं है, काश मैं तुमसे कह पाता।
आंखें तेरी हुई दिवानी, नहीं इन्हें हैं कुछ भाता
हर पल चाहें सूरत तेरी, दूजा कुछ भी नहीं सुहाता।
दिन में खोया-खोया रहता, नींद न आती रातों में
भरी चूड़ियां हरदम दिखतीं, मेंहदी वाले हाथों में।
हर आहट पे चौक मैं पड़ता मिलता मुझको आभास तेरा
दिल में उठती घोर निराशा जब न मिलता साथ तेरा।
खत मैंने हैं बहुत लिखे पर एक न तुमको भेज सका
डर लगता है पढ कर इनको, हो न जाओ कहीं खफा।
मैं देखूंगा बाट तुम्हारी, किया इरादा पक्का है
तुम भी मुझसे प्यार करोगी, प्यार मेरा गर सच्चा है।
चित्र chennai.olx.in से साभार
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6 comments:
खत मैंने हैं बहुत लिखे पर एक न तुमको भेज सका
डर लगता है पढ कर इनको, हो न जाओ कहीं खफा।
हिम्मत करके भेज ही दीजिये.
सुन्दर अभिव्यक्ति
कितना प्यार मुझे है तुमसे कैसे तुमको बतलाऊं
हनूमान मैं नहीं प्रिये जो चीर कलेजा दिखलाऊं
जोरदार लिखा है ...वाह
ab aap sachmuch kavi ho gaye hain badhai
वाह पंडितजी, कविता अच्छी लिखी है.
मैं देखूंगा बाट तुम्हारी, किया इरादा पक्का है
तुम भी मुझसे प्यार करोगी, प्यार मेरा गर सच्चा है।
क्यों नहीं वो करेगी प्यार - अगर तेरा प्यार सच्चा है.
वाह हिमान्शु जी, प्यार करने का अन्दाज अच्छा लगा। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिए आप सभी को हृदय से धन्यवाद
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