Thursday, August 25, 2022

राखी की राखी // कहानी // Rakhi Ki Rakhi // Story on Rakshabandhan

राखी की राखी // कहानी // Rakhi Ki Rakhi // Story on Rakshabandhan 

राखी के पिताजी सेना में हैं तो तबादले तो होते ही रहते हैं। लेकिन इस बार का तबादला बीच सत्र में हुआ है। राखी कक्षा छठवीं में है और राखी का आज स्‍कूल में पहला दिन था। घर लौटने पर मॉं ने पूछा, ''कैसा लगा स्‍कूल।'' राखी ने बताया, ''बहुत अच्‍छा रहा और मेरे तो नये दोस्‍त भी बन गये हैं। मॉं पता है मेरी कक्षा में एक लडका है उसका नाम स्‍वतन्‍त्र है। जैसे तुमने मेरा नाम राखी इसलिए रखा क्‍योंकि मैं रक्षाबन्‍धन के दिन पैदा हुई थी उसी तरह उसके मम्‍मी-पापा ने स्‍वतन्‍त्रता दिवस के दिन पैदा होने के कारण उसका नाम स्‍वतन्‍त्र रख दिया है। है न संयोग की बात। पता है मॉं स्‍वतन्‍त्र की कोई बहन नहीं है। इसलिए वह दुखी था कि रक्षाबन्‍धन पर उसे कोई राखी नहीं बांधेगा। मैंने भी कह दिया कि अब मैं आ गयी हूँ तो इस बार तुम्‍हारी कलाई सूनी नहीं रहेगी। मैं बांधूंगी तुम्‍हारी कलाई पर राखी।'' मॉं मुस्‍कुराई और बोली, ''लेकिन रक्षाबन्‍धन के दिन तो स्‍कूल में छुट्टी रहेगी''। राखी ने कहा, ''तो क्‍या हुआ, मैं एक दिन पहले ही राखी बॉंध दूँगी।'' मॉं ने कहा, ''बडी होशियार है मेरी बि‍टिया''। राखी स्‍वभाव से बडी बातूनी है साथ ही वह बहुत ही जल्‍दी सबसे घुलमिल जाती है। यही कारण है कि स्‍कूल के पहले दिन ही उसने ढेर सारे दोस्‍त बना लिये थे।

राखी ने मॉं को सुबह से ही तैयारियॉं करते हुए देखा तो बोली, ''मॉं क्‍या फिर से पापा का ट्रान्‍सफर हो गया है जो तुम सुबह से तैयारियॉं कर रही हो।'' मॉं ने कहा, ''अरे नहीं पगली, आज तेरी नानी का फोन आया था और इस बार हम रक्षाबन्‍धन पर नानी के घर जायेंगे।'' नानी के घर का नाम सुनकर राखी उछल पडी, ''नानी के घर''। लेकिन फिर एकाएक सोच में पड गयी। मॉं ने कहा, ''क्‍या हुआ, किस सोच में पड गयी।'' राखी ने कहा, ''मॉं अभी तो रक्षाबन्‍धन में तीन दिन बाकी हैं, फिर अभी से क्‍यों जाना''। मॉं ने बताया, ''ट्रेन में आज का ही रिजर्वेशन मिल पाया है उसके बाद सीट खाली नहीं है इसलिए हमें आज ही निकलना होगा।'' राखी ने उदास होते हुए कहा, ''मॉं फिर मैं स्‍वतन्‍त्र को राखी कैसे बांध पाऊंगी, इस साल भी उसकी कलाई सूनी रहेगी, मैंने कहा था कि इस साल मैं उसे राखी बॉंधूंगी''। मॉं ने मुस्‍कुराते हुए कहा, ''मैंने सारा इन्‍तजाम कर लिया है, मैं कल ही बाजार से मिठाई और राखी लाई हूँ। हमारी ट्रेन आज शाम में है, तुम आज स्‍कूल जाना और स्‍वतन्‍त्र को राखी बांध देना, अब खुश।'' राखी खुशी से उछल पडी और माँ के गले से लिपट गयी।

स्‍कूल से लौटने पर राखी का चेहरा उतरा हुआ था। मॉं को समझने में देर न लगी कि आज स्‍कूल में कुछ गडबड हुई है। मॉं ने राखी से पूछा, ''क्‍या हुआ मेरी लाडो, आज बडी उदास लग रही है''। राखी ने रुआसे होते हुए मॉं से कहा, ''मॉं स्‍वतन्‍त्र से मुझसे राखी नहीं बंधवाई। मैं उससे बार बार कहती रही लेकिन न जाने क्‍यों उसने मेरी एक न सुनी। कक्षा से सारे बच्‍चे मेरा मजाक भी बना रहे थे। ऐसा क्‍यों हुआ मॉं। उसी ने बताया था कि उसके बहन नहीं है तभी तो मैं उसके लिए राखी लेकर गयी थी''। मॉं ने राखी का हाथ प्‍यार से थामते हुए कहा, ''बस इतनी सी बात से दुखी है मेरी प्‍यारी बिटिया। तुझे दुखी होने की क्‍या जरूरत है। भगवान ने तो तुझे भाई दिया है न। रक्षाबन्‍धन के दिन तू उसे राखी बॉंध देना। अरे पगली, दुखी तो वो हो जिसके बहन नहीं है और उसने तेरी राखी ठुकराई है। चल फटाफट तैयार हो जा हमारी ट्रेन का समय हो रहा है।''

सभी नानी के घर पहुँच गये थे। वहॉं पहुँचने पर राखी को पता चला कि नानी के घर वृन्‍दावन से बहुत बडे महात्‍मा आये हुए हैं और वे श्रीमदभागवत की कथा सुना रहे हैं। कथा के बीच बीच में संगीत और नृत्‍य भी होता था साथ ही वे कथा के अन्‍त में साधकों की शंकाओं का समाधान भी करते हैं। राखी बडे ध्‍यान से प्रतिदिन की कथा सुनती थी और एक दिन उसके मन में आया कि क्‍यों न वह भी अपनी शंका का समाधान स्‍वामी जी से ही पूछे। बस फिर क्‍या था जैसे ही स्‍वामी जी ने साधकों की ओर शंका के समाधान हेतु इशारा किया राखी फट से खडी हुई और सारा वृतान्‍त कह सुनाया। स्‍वामीजी ने कहा, ''मनुष्‍य के पूर्वजन्‍म के कर्मों के अनुसार ही उसके इस जन्‍म में सुख-दुख का भोग करना पडता है। अगर उसने तुमसे राखी नहीं बंधवाई तो यह उसका दुर्भाग्‍य है क्‍योंकि उसके पूर्वजन्‍म के कृत्‍यों के कारण ही उसे इस जन्‍म में बहन नहीं मिली और अगर वह तुमसे राखी बंधवा लेता तो उसके पाप कट जाते किन्‍तु ऐसा न करके उसने अपना ही नुकसान किया है। दुखी तो उसे होना चाहिए, तू दुखी क्‍यों होती है। जो प्रारब्‍ध में लिखा होता है वह होकर ही रहता है। इस बात का पछतावा उसे पूरी जिन्‍दगी रहेगा।'' राखी ने स्‍वामी जी के चरणों में प्रणाम किया किन्‍तु उसका बालमन अभी भी समझ नहीं पा रहा था कि अगर स्‍वतन्‍त्र उससे राखी बंधवा ही लेता तो उसका क्‍या बिगड जाता।

शाम को राखी ने वही सवाल अपने मामाजी से पूछा। मामाजी ने राखी को समझाया, ''हर व्‍यक्ति का मनोवैज्ञानिक स्‍तर एक सा नहीं होता है। इस कारण से उसके निर्णय भी एक से नहीं होते हैं। कुछ व्‍यक्ति अपने लिये हुए निर्णय पर कायम रहते हैं और कुछ अपना निर्णय बार बार बदलते रहते हैं। इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं जिनमें से एक कारण है नयी जिम्‍मेदारी से भागना। कुछ लोग उत्‍साह में आकर किसी बात के लिए हामी तो भर लेते हैं किन्‍तु जब उस बात को पूरा करने का समय आता है तो उन्‍हें अहसास होता है कि उनके गले एक नयी जिम्‍मेदारी पडने वाली है, चूंकि उनका मन अन्‍दर से मजबूत नहीं होता है इसलिए वे नयी जिम्‍मेदारी से बचने के लिए अपने निर्णय तत्‍काल बदल देते हैं। ऐसे व्‍यक्ति मन के पक्‍के नहीं होते हैं और इन पर कभी भी विश्‍वास नहीं किया जा सकता। इस तरह के व्‍यक्ति जीवन में कभी भी बडा कार्य नहीं कर सकते। ये हमेशा दूसरों की प्रगति की शिकायत करते रहते हैं और अपनी नाकामी का ठीकरा किसी अन्‍य के सिर पर फोडने में तत्‍पर रहते हैं।'' राखी की समझ में ज्‍यादा कुछ तो नहीं आया फिर भी उसने हॉं में सिर हिलाया। 

एक फौजी के घर में होली, दिवाली, दशहरा, ईद आदि पर्व उसी दिन होता है जिस दिन उसका फौजी घर वापस आता है और आज राखी के पिताजी घर आने वाले थे। पूरे घर में तैयारियां चल रही थी। नजरें बार बार द्वार की ओर जा रही थी। किसी भी वाहन की आवाज से बच्‍चे खिडकी से झॉंकते कि कहीं पिताजी तो नहीं आ गये। पिताजी के आने पर राखी उनसे लिपट गयी। पिताजी ने प्‍यार से बच्‍ची को अपनी गोदी में उठाकर लाड किया। राखी ने अपने बातूनी लहजे में जो बातें करना शुरू किया तो देश-विदेश का सारा हाल कह सुनाया। मॉं ने कहा, ''राखी बस बातें ही करती रहेगी या पापा को पानी-वानी भी पीने देगी।'' राखी ने कहा, '' ओह ओ। बातों बातों में मैं तो भूल ही गयी। मैं अभी लायी।'' पिताजी के जलपान करने के बाद राखी से न रहा गया और उसने पिताजी के सामने अपनी समस्‍या रख दी। पिताजी कुछ देर सोचते रहे कि इस छोटी बच्‍ची को वे दुनियादारी की किताब किस भाषा में समझायें। वह कैसे बतायें कि समाज में विकृतियॉं किस स्‍तर तक बढ गयी हैं जहॉं भैया या बहनजी बोलने को लोग अन्‍यथा लेते हैं। ऐसे वातावरण में कोई राखी बंधवाने की हिमाकत करके भला अपने आपको पिछडा हुआ क्‍यों दिखायेगा। उन्‍हें आज भी याद है अपने बचपन का समय जब उनके गॉंव के आस पास के दस-बारह गॉंवों में उनकी बहन, दीदी, बुआ आदि के घर हुआ करते थे। हालांकि वे सब उनके अपने परिवार की न थी। वरन् उनके गॉंव की होने के नाते से बहन, दीदी, बुआ आदि लगती थी। लेकिन जब कभी भी उन गॉंवों से होकर गुजरना होता था तो वे उनके गॉंव जरूर जाते और फिर उतनी ही आत्‍मीयता से  प्रेम व्‍यवहार होता था जैसे कोई अपने सगे भाई-भतीजों का करता है। खैर अब समय बदल चुका है पुरानी परम्‍परायें कमजोर हो रही हैं। समाज पर अपसंस्‍कृति का बोलबाला बढ रहा है। बच्‍चे जो कुछ टीवी / मोबाइल पर देख रहे हैं उसी से ज्‍यादा सीख रहे हैं। ऐसा हो भी क्‍यों न। बच्‍चे अब एकल परिवार का हिस्‍सा बन कर रह गये हैं इस कारण से उन्‍हें संयुक्‍त परिवार एवं सम्‍पूर्ण ग्राम-परिवार की परम्‍परा का परिचय ही नहीं है। 

''पापा कहॉं खो गये'', राखी ने कहा। राखी ने जैसे पिताजी को नींद से जगाया। पिताजी को पता था कि जबतक राखी को उसके सवालों के जवाब न मिलेंगे तब तक वो चुप बैठने वाली नहीं है। पिताजी ने राखी से कहा, ''तुम्‍हारे सारे सवालों के जवाब एक जादुई किताब में लिखा है। उस किताब का नाम है श्रीमद्भगवद्गीता''। राखी ने कहा, ''वो तो पूजा करने की किताब है। आप मुझे उल्‍लू बना रहे हैं। जब तक मेरे सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे मैं आपको नहीं छोडने वाली।'' पिताजी ने कहा, ''श्रीमद्भगवद्गीता केवल पूजा की पुस्‍तक नहीं है, वह जीवन जीने की कला सिखलाने वाली पुस्‍तक है''। ''फिर वह हमेशा पूजाघर में क्‍यों रखी रहती है'' राखी ने सवाल दागा। पिताजी ने समझाया, ''वह पुस्‍तक हमारे जीवन में उतना ही महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखती है जितना महत्‍व हम ईश्‍वर को देते हैं इसलिए ही उसे पूजाघर में स्‍थान दिया जाता है।'' राखी दौड के गयी और श्रीमद्भगवद्गीता लाकर पिताजी को दिया। पिताजी ने पुस्‍तक खोलकर राखी को समझाया, ''यह देखो इसमें लिखा है कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।। अथात् तेरा कर्म में ही अधिकार है ज्ञाननिष्ठामें नहीं। वहाँ ( कर्ममार्गमें ) कर्म करते हुए तेरा फल में कभी अधिकार न हो अर्थात् तुझे किसी भी अवस्थामें कर्मफल की इच्छा नहीं होनी चाहिये। यदि कर्मफल में तेरी तृष्णा होगी तो तू कर्मफलप्राप्ति का कारण होगा। अतः इस प्रकार कर्मफल प्राप्ति का कारण तू मत बन। क्योंकि जब मनुष्य कर्मफल की कामना से प्रेरित होकर कर्म में प्रवृत्त होता है तब वह कर्मफलरूप पुनर्जन्म का हेतु बन ही जाता है। यदि कर्मफल की इच्छा न करें तो दुःखरूप कर्म करने की क्या आवश्यकता है इस प्रकार कर्म न करने में भी तेरी आसक्ति प्रीति नहीं होनी चाहिये।'' पिताजी को समझते देर न लगी कि इतनी गूढ बाते राखी की अवस्‍था के अनुरूप नहीं है। उन्‍होंने कहा, ''इसे ऐसे समझो, ईश्‍वर ने हमें इस धरती पर अच्‍छे कार्य करने के लिए भेजा है। हमें अपना सर्वोत्‍तम प्रदर्शन करते रहना चाहिए। हमें यह नहीं देखना चाहिए कि उस कर्म के बदले में हमें क्‍या मिल रहा है। तुमने स्‍वतन्‍त्र को राखी बांधने को बहुत ही अच्‍छा निर्णय लिया किन्‍तु अगर उसने तुमसे राखी नहीं बंधवाई तो यह उसका दुर्भाग्‍य है। तुम्‍हें इसमें चिन्‍ता करने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। तुमने अच्‍छा कार्य किया और आगे भी करते रहना बिना इसकी परवाह किये कि तुम्‍हें बदले में क्‍या मिल रहा है।'' राखी ने पूछा, ''पापा इस पुस्‍तक में और क्‍या क्‍या लिखा है''। पिताजी को समझते देर न लगी कि राखी की ज्ञान-पिपासा अभी शान्‍त नहीं हुई है। उन्‍होंने कहा, ''इस पुस्‍तक में जीवन में आने वाली हर समस्‍या का समाधान लिखा हुआ है। जब आप कुछ बडी हो जायेंगी तो आपको यह पुस्‍तक मार्गदर्शन करायेगी।'' राखी ने पूछा, ''पापा आप तो बडे हो गये हैं, तो क्‍या ये पुस्‍तक आपको मार्गदर्शन कराती है''। पिताजी ने उत्‍तर दिया, '' हॉं बेटे''। पिताजी ने अपनी जेब से एक छोटी पुस्‍तक निकालकर दिखाते हुए कहा, ''यह देखो इस पुस्‍तक का छोटा रूप मैं हमेशा अपने साथ रखता हूँ और जहॉं मुझे आवश्‍यकता होती है मैं अपने प्रश्‍नों का उत्‍तर तुरन्‍त ढूढ लेता हूँ।'' 

तभी मॉं की पुकार आती है, ''बाप बेटी का संवाद समाप्‍त हो गया हो तो कुछ आगे का भी काम होना चाहिए। भोजन तैयार हो गया है।'' पिताजी ने कहा, ''राखी बेटे, इसके आगे की बातें हम शाम को करेंगे अब हमें भोजन की तैयारी करनी है।''

Thursday, July 15, 2021

स्वतंत्रता || Swatantrata


बहुत समय पहले की बात है। एक चोर था वह चोरी की नियत से एक सेठ के घर में घुसा, लेकिन सेठ के घर में पाले गए कुत्तों को भनक लग गई और वह भोंकने लगे। चोर भाग कर सेठ की गौशाला में जा छिपा। गौशाला में कई गाय बन्धी थी। तभी एक चमत्कार हुआ। चोर ने महसूस किया कि वह  गायों की बातों को सुन और समझ सकता है।  उस गौशाला में एक बूढ़ी गाय थी जो एक नई नई आई गाय से बात कर रही थी। बूढ़ी गाय ने नई गाय से पूछा, "तुम तो नयी लगती हो, पहले तुमको यहां नहीं देखा"। नई गाय ने कहा, "मैं आज ही आई हूं, अब ना मालूम कितने दिन तक मुझे यहां बंद कर रहना पड़ेगा, पहले मैं जंगल में स्वतंत्रता पूर्वक विचरण करती थी"। बूढ़ी गाय ने कहा, "जो जिसका कर्जदार है, उसे तो कर्ज उतारना ही होगा"। नई गाय ने कहा, "मैं आपकी बात का मतलब नहीं समझी"। तब बूढ़ी गाय ने कहा कि मैं पिछले जन्म में एक चोर थी और मैंने इस सेठ के घर में इसके धन की चोरी की थी उस चोरी के कारण मुझे इस जन्म में गाय बनना पड़ा और जितना धन मैंने इस सेठ का चोरी किया था उस धन के बराबर मुझे दूध देकर भरपाई करनी है तभी मेरी मुक्ति हो पाएगी। गायों की बात सुनकर चोर सन्न रह गया। उसने निश्चय किया कि अब वह चोरी का काम नहीं करेगा बल्कि मेहनत मजदूरी करके जो कुछ भी प्राप्त होगा उसी से अपना जीवन यापन करेगा। इस प्रकार चोर ने चोरी का काम सदा के लिए छोड़ दिया और मेहनत तथा ईमानदारी के साथ सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा।

Wednesday, July 14, 2021

भोलू गौरी और टॉमी || Bholu, Gauri aur Tomy

 


एक गांव में भोलू नाम का एक लड़का रहता था उसकी मां बचपन में ही गुजर चुकी थी उसका पालन पोषण उसके पिता और गौरी ने किया था। गौरी कौन है? गौरी है उसकी प्यारी गाय। वह गौरी को बहुत प्यार करता था और गौरी भी उसे पुत्रवत स्नेह करती थी। भोलू ने एक कुत्ता भी पाल रखा था जिसका नाम टॉमी था। एक दिन उसके घर में उसके मामा जी आए और उन्होंने गाय अपने घर ले जाने की इच्छा जाहिर की। भोलू के पिताजी उन्हें मना कर सके अगले दिन सुबह उसके मामा गाय को अपने साथ ले गए। गौरी के जाने से भोलू बहुत दुखी रहने लगा और अब वह टॉमी के साथ खेलता भी नहीं था। एक दिन भोलू टॉमी के साथ उदास बैठा था तभी उसने टॉमी से कहा कि गौरी के बिना उसका मन नहीं लगता इसीलिए वह बहुत दुखी रहता है। उस दिन शाम से ही टॉमी दिखाई नहीं दिया। भोलू को बड़ी चिंता हुई कि पहले गौरी गई और अब टॉमी भी कहीं चला गया। दुखी मन से उस की रात बीती। अगली सुबह उसके कानों में गौरी की आवाज सुनाई दी उसे लगा कि वह सपना देख रहा है लेकिन गौरी की आवाज बार-बार सुनाई देने पर वह उठा और बाहर निकल कर देखा तो गौरी खड़ी थी। वह जाकर गौरी से लिपट गया और गौरी भी उसे दुलार करने लगी। गोलू ने देखा गौरी की रस्सी बुरी तरह कुतरी गई थी। उसे यह समझते देर लगी की गौरी की रस्सी को टॉमी ने ही कुतरा होगा। जो भी हो भोलू गौरी और टॉमी को साथ पाकर बहुत खुश हुआ।

Tuesday, July 13, 2021

चरवाहा || Charwaha

 


एक चरवाहा था। वह रोज गाय चराने जाता था। उसके साथ उसका पालतू कुत्ता भी जरूर जाता था। वह दिन भर अपने कुत्ते के साथ खेलता और शाम को गायों को वापस लेकर के गांव जाता था। रोज की तरह एक दिन वह गाय चराने गया और एक घने पेड़ के नीचे बैठकर सोचने लगा कि एक दिन उसके पास भी ढेर सारी गाय हो जाएंगी और वह खूब सारा दूध देंगी। जिन्हें बेचकर वह बहुत अमीर हो जाएगा। जाने कब तक वह अपने दिवास्वप्न में डूबा रहा कि उसे यह भी नहीं पता चला कि उसकी गाय किधर चली गई। जब उसे होश आया तो शाम होने वाली थी और आसपास गायों का अता पता ही नहीं था। वह बहुत दुखी हुआ और अपने कुत्ते के पास बैठकर दुखी मन से बड़बड़ाने लगा, " जाने मेरी गाय कहां गई, अब मैं बिना गायों के घर कैसे जाऊंगा, अगर घर गया तो जरूर मेरी पिटाई होगी।" तभी उसने देखा कि उसका कुत्ता एक तरफ भोंकते हुए भागा जा रहा है वह भी अपने कुत्ते के पीछे दौड़ने लगा। थोड़ी दूर जाकर के उसने देखा कि उसकी गाय झाड़ियों के पीछे चर रही थी। गायों को पाकर वह बहुत खुशी हुआ और कुत्ते और गाय को लेकर वापस अपने घर गया।

Monday, July 12, 2021

दिवास्वप्न || Day Dreaming



एक गांव में एक ग्वाला था। उसके घर में कई गाय थी जिनका दूध वह अपने गांव के लोगों को बेचने के लिए रोज जाता था। एक दिन वह दूध लेकर जा रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अभी उसके पास जितनी गाय हैं कुछ दिन बाद उसकी दोगुनी गाय उसके पास होंगी और उसके कुछ दिन बाद उससे भी दोगुनी गाय उसके पास हो जाएंगी। तब उसके पास बेचने के लिए बहुत ढेर सारा दूध भी हो जाएगा। इस प्रकार दूध बेच बेच कर वह बहुत अमीर हो जाएगा। इसी प्रकार दिवास्वप्न देखते हुए वह आगे बढ़ता जा रहा था कि तभी उसका पैर जमीन पर बैठे हुए एक कुत्ते से टकरा गया। कुत्ता पें- पें करते हुए भागा लेकिन तब तक उस लड़के का सारा दूध गिर चुका था। भविष्य में होने वाले लाभ के बारे में सोचते सोचते वह अपने वर्तमान के लाभ से भी हाथ धो बैठा।


Friday, May 8, 2020

Winners Never Quit Quitters Never Win


अखंड भारत पब्लिक स्कूल। जी हां यह वही विद्यालय है जिसने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को आधार बनाया और इसके छात्र देश ही नहीं वरन विदेशों में भी अपनी सर्वोच्च सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। इस विद्यालय ने अपनी स्थापना के 50 वर्ष पूरे कर लिए गए हैं जिस के उपलक्ष्य में स्वर्णिम जयंती समारोह का आयोजन किया जा रहा है। समारोह में देश-विदेश से हजारों की संख्या में पुरा छात्र एवं उनके परिवार एकत्रित हुए हैं जिसकी शोभा देखते ही बनती है। वैसे तो स्वर्णिम जयंती समारोह के उपलक्ष में अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है किंतु आज का कार्यक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज का कार्यक्रम पूर्णतया सैन्य सेवाओं को समर्पित है।

आपको बताते चलें कि इस विद्यालय में जितने छात्र विभिन्न सेवा में दिए हैं उससे कहीं ज्यादा छात्र रक्षा सेवाओं में अधिकारी के रूप में दिए हैं। यही कारण है कि आज का 1 दिन का कार्यक्रम रक्षा सेवाओं को समर्पित करते हुए आयोजित किया गया है आज का आयोजन अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रमों के अनुसार ही संचालित हो रहा है। तभी अचानक भारत के थल सेना अध्यक्ष की ओर से एक संदेश प्राप्त हुआ है (जो स्वयं भी इस विद्यालय के पूरा छात्र हैं और कार्यक्रम में उपस्थित भी हैं) जिसके अनुसार कार्यक्रम में थोड़ा फेरबदल करना पड़ रहा है। थल सेना अध्यक्ष के निर्देशानुसार एक विशेष सभा का आयोजन किया जाना है जिसमें उनके बैच के एक पूरा छात्र विशेष सभा में समस्त वर्तमान छात्रों को संबोधित करेंगे। यह कार्यक्रम पूर्व में निर्धारित नहीं था इसलिए विद्यालय प्रशासन ऊहापोह की स्थिति में आ गया कि यह अचानक से ऐसा कार्यक्रम रखने की क्या आवश्यकता पड़ गई।

बहरहाल निर्देशानुसार निश्चित समय पर विशेष सभा का आयोजन किया गया। स्वयं थल सेनाध्यक्ष ने मुख्य वक्ता का परिचय सभा में उपस्थित समस्त सदस्यों को कराया। हालांकि उनके द्वारा कराया गया परिचय मुख्य वक्ता के हाव भाव से किसी भी तरह से मेल नहीं खाता था। थल सेना अध्यक्ष जी ने परिचय कराते हुए बताया कि श्री रमेश कुमार जी मुख्य वक्ता उनके समय के विद्यालय कप्तान रह चुके हैं साथ ही साथ पढ़ाई तथा अन्य शैक्षणिक गतिविधियों में भी अव्वल दर्जे के विद्यार्थी रहे हैं। क्योंकि आज का कार्यक्रम सैन्य अधिकारियों को समर्पित था इसलिए एक गैर सैन्य व्यक्ति का उद्बोधन कार्यक्रम के बीच में रखना किसी के गले नहीं उतर रहा था। सेनाध्यक्ष के द्वारा परिचय के उपरांत मुख्य वक्ता ने अपना वक्तव्य देना शुरू किया।

Winners never quit Quitters never win.
इन शब्दों के साथ श्री रमेश कुमार जी ने लड़खड़ाती आवाज में अपना उद्बोधन प्रारंभ किया। 

मेरी समझ में नहीं आता कि कहां से शुरू करूं। उन दिनों कक्षा ग्यारहवीं के बाद एनडीए में एंट्री हो जाया करती थी मैं अपने अन्य साथियों के साथ अपने प्रथम प्रयास में ही सफल रहा और एनडीए ज्वाइन किया। अपने विद्यालय में मैं हर क्षेत्र में अव्वल रहा आया था किंतु एनडीए पहुंचकर मुझे ज्ञान हुआ कि दुनिया वीरों से खाली नहीं है NDA में पूरे भारत के सर्वश्रेष्ठ छात्र प्रवेश प्राप्त करते हैं उन छात्रों को देखकर मैं धीरे-धीरे हीन भावना का शिकार होने लगा क्योंकि मैं सदैव अव्वल ही आना चाहता था जिसके लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता होती है एनडीए पहुंचकर मैंने यह मान लिया कि मेरे जीवन का लक्ष्य पूरा हो गया है और अब मुझे आगे और मेहनत करने की आवश्यकता नहीं है यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित हुई। धीरे-धीरे मैं अपने अन्य साथियों से पिछड़ने लगा और हीन भावना मेरे अंदर घर करती गई। यह हीन भावना मेरे अंदर इतने गहरे में समा गई कि 1 दिन मैंने एनडीए छोड़ने का निश्चय कर लिया। मेरे इंस्ट्रक्टर ने मुझे बहुत समझाया और बहुत मौके दिए कि मैं अपने विचार को बदल दूं लेकिन मैं अपनी जिद पर अड़ा रहा और अंत में अपने माता पिता के सपनों को तिलांजलि देते हुए एनडीए छोड़ दिया। घर आकर मैंने अपने पिता से इंजीनियरिंग करने की इच्छा जाहिर की वैसे तो मेरे पिताजी एक मध्यम परिवार से आते थे किंतु उन्होंने आज तक मेरी हर इच्छा का सम्मान किया था और उन्होंने इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए मुझे सहर्ष अनुमति दे दी । इंजीनियरिंग में दाखिले के बाद मैंने देखा ऐसे बहुत से छात्र मुझे वहां मिले जो मुझसे जूनियर हुआ करते थे और वे आज मुझसे सीनियर है। फिर मेरे मन का भगोड़ा जाग उठा और मैंने इंजीनियरिंग भी छोड़ने का निश्चय कर लिया । किंतु इस बार मेरे पिता की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह मुझे खुले मन से सहयोग कर पाते उन्होंने मुझे बार-बार कहा कि बेटा केवल कुछ वर्षों की ही बात है पढ़ाई पूरी कर ले फिर जो करना होगा कर लेना। लेकिन मैंने एक न सुनी। 

समय हमेशा एक सा नहीं रहता। कुछ ही समय में पिताजी की मृत्यु हो गई।  पिताजी के मृत्यु के पश्चात घर की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई। उसी समय मुझे पता चला कि पिताजी ने अपनी समस्त पूंजी मेरी पढ़ाई पर खर्च कर दी थी जो कुछ बची कुची पूंजी थी जब मैंने एनडीए छोड़ी तो वहां के सारे खर्चे भरने में उन्हें जमा करनी पड़ी । उसके बाद मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ा जिसकी भरपाई भी आजीवन करते रहे और अंत में स्वर्ग सिधार गए । उनके स्वर्ग सिधारने के बाद मेरे ऊपर जिम्मेदारियों का पहाड़ टूट पड़ा। अब मैं चाह कर के भी समय को वापस नहीं ला सकता था। मैं सोचने लगा काश मैंने एनडीए न छोड़ा होता । काश मैंने इंजीनियरिंग ही कर लिया होता। लेकिन अब तो समय बीत चुका था । 

मैं इधर-उधर छोटी मोटी नौकरियों की तलाश में भटकने लगा लेकिन कहीं पर कुछ काम नहीं मिला और समय बड़ी कठिनाई से बीतने लगा। उस जमाने में तो आज के जैसे व्हाट्सएप फेसबुक सोशल मीडिया जैसी चीजें नहीं थी इसलिए मैं पूरी तरह से अज्ञातवास में चला गया। जैसे तैसे मुझे एक बैंक में छोटे से क्लर्क की नौकरी मिल गई और मेरा गुजारा चलने लगा लेकिन मेरे दोस्त हमेशा मेरे बारे में चिंतित रहा करते थे वह मुझसे संपर्क करना चाहते थे लेकिन मैं किसी ना किसी बहाने से उनसे बचने की ही कोशिश किया करता था मेरे अंदर की हीन भावना मुझे उनका सामना करने का साहस नहीं देती थी।

 किंतु आज जब विद्यालय का 50 वां स्थापना दिवस का समारोह था तो माननीय थल सेना अध्यक्ष जी ने मुझसे कहा की तुम्हारा अनुभव हमारे भावी छात्रों के लिए एक मार्गदर्शन का कार्य करेगा। मुझे भी लगा कि मैंने अपना जीवन व्यर्थ ही नष्ट कर दिया। हो सकता है कि मैं किसी बच्चे के भविष्य को बनाने के किसी काम आ सकूं। बस इतनी सी मेरी कहानी है और यही बताने के लिए मैं यहां आया था। मेरा सभी बच्चों को यही संदेश है कि हमें इस विद्यालय तक पहुंचाने में हमारे मां-बाप ने अथक परिश्रम किया है। उनके सपने पूरे करने की जिम्मेदारी हम सब की है। वह हमसे कुछ उम्मीद नहीं करते वह केवल हमारी सफलता देखना चाहते हैं । इसलिए मैं आप सबको यही समझाना चाहता हूं कि आप जीवन के लक्ष्य से कभी भी ना भटके। मैंने जो भूले की है वह आप अपने जीवन में कभी न करें मैंने अपने माता पिता के सपनों को चकनाचूर कर दिया जिसका दुख मुझे पूरे जीवन में रहेगा जिसकी भरपाई मैं चाह कर भी कभी नहीं कर सकूंगा लेकिन मैं चाहूंगा कि आप अपने जीवन में कभी भी ऐसी गलती ना करें और मेरा मूल मंत्र आप नोट करने की। Winners never quit Quitters never win.

रमेश कुमार जी के उद्बोधन के पश्चात सभा का समापन हुआ सभी छात्रों ने अपने मन में निश्चय कर लिया कि वे जहां तक संभव हो सके अपने माता पिता के सपनों को साकार करने की पूरी कोशिश करेंगे और साथ ही उन्होंने अपना मूल मंत्र बना लिया की Winners never quit Quitters never win.

Thursday, May 7, 2020

नो कास्ट नो रिलीजन नो गॉड No Cast No Religion No God

''नो कास्ट नो रिलीजन नो गॉड''

दो युवाओं के द्वारा ''नो कास्ट नो रिलीजन नो गॉड'' की मुहिम को आगे बढ़ाने की सराहना की जानी चाहिए।  इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ हद तक हम समाज में व्याप्त जातिगत धर्मगत एवं पंथगत मतभेदों को मिटा सकेंगे, किंतु क्या वास्तव में यह ऐसा ही है जैसा सुनने में लगता है । 

पहले चर्चा करते हैं नो कास्ट पर । हिंदू मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जाति व्यवस्था ऋग्वेद कालीन है । वर्ण शब्द 'वृ' धातु से बना है जिसका तात्पर्य होता है वरण करना । प्रारंभ में यह व्यवस्था कर्म आधारित थी किंतु कालांतर में यह जन्म आधारित हो गई जो कि इस व्यवस्था का विकृत रूप कहा जा सकता है। अब यदि हम अपने दैनिक जीवन में विचार करें तो हम पाएंगे कि हम सभी अपने जीवन में वरण या वर्ग विभाजन करते हैं और हर वस्तु एवं व्यक्ति को वर्णों में विभक्त करते हैं यथा दोस्त, दुश्मन, अमीर, गरीब, रोजगार वाला, बेरोजगार, व्यापारी, भिखारी, राजनीतिक, वैज्ञानिक, अधिकारी, अधिवक्ता, शिक्षक, छात्र आदि आदि । विदेशों में भी हमें टेलर , वुड्समैन पेंटर आदि सरनेम देखने को मिलते हैं । और तो और जब हम अपने पहनने के लिए कपड़े खरीदते हैं तब भी उनका वर्ण विभाजन करते हैं , यथा यह समारोह वाला , यह रोज पहनने वाला, यह कार्यालय जाने वाला आदि । वर्ण व्यवस्था का विस्तृत स्वरूप हमें विज्ञान के क्षेत्र में आवर्त सारणी एवं जंतु वर्गीकरण के रूप में भी दिखाई देता है।

अब नो रिलिजन की चर्चा करते हैं।  हिंदू शास्त्रों के अनुसार जो धारण करने योग्य है वही धर्म है । यह धर्म की बहुत व्यापक परिभाषा है जो यह बताती है कि हम अपने जीवन में क्या धारण करते हैं । इस परिभाषा के अनुसार धर्म केवल मंदिर में जाकर यज्ञ अनुष्ठान करना नहीं है , वरन हर वह कार्य है जिसे हम संकल्प रूप में अपने जीवन में धारण करते हैं । धर्म का संबंध केवल पूजा पद्धति ना होकर हर वह क्रिया है जो किसी मत के अनुसार करणीय है । इस मान्यता के आधार पर हम यह भी कह सकते हैं कि हम यदि किसी धर्म को ना माने फिर भी हम धर्म विमुख न रह सकेंगे क्योंकि हर व्यक्ति जिस पेशे से जुड़ा है उस पेशे के सभी करणीय कार्य उसके धर्म का निर्माण करते हैं जैसे छात्र का छात्र धर्म , मानव का मानवता धर्म और तो और डॉक्टर ,वकील ,अभियंता ,अधिकारी ,पुलिस, कर्मचारी और सैनिक आदि का भी एक धर्म होता है जिसकी मर्यादा में रहकर उन्हे कार्य करना पड़ता है।

अब आते हैं अंतिम बिंदु यानी नो गॉड पर।  अनेक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ईश्वर को नियंता के रूप में स्वीकार किया गया है जो इस संपूर्ण चराचर जगत का नियंत्रण करता है एवं संसार की समस्त शक्तियां ईश्वर द्वारा संचालित होती हैं। विश्व का एक वर्ग ऐसा भी है जो ईश्वर में बिल्कुल विश्वास नहीं करता फिर भी अपने जीवन की समस्त गतिविधियों को उसी प्रकार संचालित करता है जैसे एक आस्तिक व्यक्ति करता है। स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी ने तो नास्तिक को सबसे बड़ा आस्तिक माना है क्योंकि उसकी नास्तिकता में अटूट श्रद्धा होती है । ईश्वर को मानना या ना मानना किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अंग हो सकता है किंतु प्रायः देखा जाता है कि हर व्यक्ति किसी न किसी व्यक्ति को अपने आदर्श के रूप में स्वीकार करता है जिसके जैसा वह स्वयं बनना चाहता है और इसीलिए वह उसका अनुकरण भी करता है । यही धारणा ईश्वर का भी निर्माण करती है, ऐसा कहा जा सकता है । किंतु जब इस धारणा में अंधविश्वास, अंधानुकरण एवं अंधश्रद्धा का बोलबाला हो जाता है , तो व्यक्ति केवल अपनी ही सुनता है और अपनी ही बात सभी लोगों से मनवाना भी चाहता है और यही विकृत रूप ग्रहण कर लेती है और समाज के लिए घातक सिद्ध होती है।

सारांश रूप में हम यह कह सकते हैं कि इन दोनों युवाओं का प्रयास सराहनीय है किंतु हजारों वर्षों के अनुभव एवं ज्ञान को एक झटके में तिलांजलि दे देना क्या हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए न्याय संगत एवं हितकारी होगा इस पर भी विचार किया जाना आवश्यक है। समय की मांग है कि हम जागरूक बने एवं समाज के हर व्यक्ति को जागरूक करें, जिससे कि एक ऐसे समाज का निर्माण हो सके जिसमें हर व्यक्ति को व्यक्ति की गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार मिल सके।

Wednesday, May 6, 2020

फेक न्यूज़ क्या है ।। What is Fake News

Fake News

फेक न्यूज़ एक अंग्रेजी शब्द है जिसका हिंदी अनुवाद झूठी खबरें या मिथ्या समाचार है। संकुचित अर्थों में फेक न्यूज़ के अंतर्गत वह खबर सम्मिलित की जाती है जो कि सत्य नहीं है, किंतु इसके व्यापक अर्थ के अंतर्गत अनेक चीजों को सम्मिलित किया जा सकता है, जैसे तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करना, एकांगी दृष्टि से रिपोर्टिंग करना, तथ्यों की गहराई में ना जाना, बिना पुष्टि के आनन फानन में समाचार को आगे बढ़ा देना ।

यदि हम फेक न्यूज़ की उत्पत्ति पर प्रकाश डालें तो हमें यह ज्ञात होगा कि फेक न्यूज़ का चलन कोई नया नहीं है, वरन् यह बहुत ही पुराना है। राजा महाराजा के जमाने से चल रहा फेक न्यूज़ का धंधा प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध तक आते-आते बहुत व्यापक रूप में सामने आया। फेक न्यूज़ या प्रोपेगेंडा का इस्तेमाल द्वितीय विश्व युद्ध में तकनीकी विकास के साथ राज्य प्रायोजित हुआ और खूब फला फूला ।

जैसे-जैसे संचार क्रांति का युग आया एक न्यूज़ के फैलने की गति भी बहुत तेज होती गई । पुराने समय में कोई फेक न्यूज़ अपनी धीमी रफ्तार के कारण जहां एक सीमित क्षेत्र को ही प्रभावित कर पाती थी , वहीं यह आज पूरे देश एवं विश्व को प्रभावित करने की क्षमता रखती है।

एक सच्चे पत्रकार का नैतिक दायित्व है कि वह तटस्थ रहकर किसी खबर की हर दृष्टि से पड़ताल करें, समाचार की पुष्टि होने पर ही उसे आगे बढ़ाएं, जरा भी संदेह होने या विश्वस्त सूत्रों से पुष्टि न होने पर उसे आगे ना बढ़ाएं ।

वर्तमान समय सोशल मीडिया का युग है और इस समय ऐसे बहुत से माध्यम है जिसमें कोई भी व्यक्ति, जो कि प्रशिक्षित संवाददाता नहीं है, कहीं से भी कोई भी खबर सार्वजनिक कर सकता है। कभी-कभी यह फेक न्यूज़ किसी व्यक्ति, उत्पाद, समाज, धर्म , संप्रदाय, मान्यता आदि को निशाना बनाकर वायरल की जाती है, जिनके अत्यंत घातक परिणाम समाज को देखने को मिलते हैं । आज के समय में अनेक राजनीतिक पार्टियां अपना प्रचार एवं दूसरी पार्टी का दुष्प्रचार करने के लिए बाकायदा आईटी सेल का गठन कर प्रायोजित कार्यक्रम चला रही है।  इसी क्रम में एक देश दूसरे देश के विरुद्ध ऐसे कार्यक्रमों का संचालन कर रहे हैं जो कि पत्रकारिता के मानदंडों के बिल्कुल विपरीत है।

 आज के इंटरनेट के युग में किसी भी सूचना की सत्यता की पड़ताल करना अब उतना मुश्किल नहीं रह गया है, जितना कि पहले हुआ करता था। अतः सारांश रूप में यह कहा जा सकता है कि हम चाहे पत्रकार हों या आम नागरिक, हमारे पास आने वाली हर खबर को तभी आगे भेजें जब उसकी विश्वसनीयता की पड़ताल अपने स्तर से कर ले।खासतौर से उन खबरों के प्रति अत्यंत सचेत रहने की आवश्यकता है जो हमारे समाज एवं देश को तोड़ने का कार्य कर सकती हैं।