है ब्रह्म आत्मा वेद सभी कहते हैं
सुख-दुःख तो तन के संग लगे रहते हैं
ये जिए मरे शरीर दुखों का घर है,
इस घर में चेतन रूप निराला जर है
जर ईश्वर का प्रतिबिम्ब आप ईश्वर है
जब तलक चले ये प्राण तभी तक नर है
ये पञ्च भूत से मिले जुड़े रहते हैं
सुख-दुःख तो तन के संग लगे रहते हैं
इस तन के संग विकार लगा आता है
मन चलाय वान है अचल नही पता है
मन बन जाय और कभी बिगड़ जाता है
मन मरने से ही संत निगम गता है
मन बिना ठिकाने शोक नदी बहते हैं
सुख-दुःख तो तन के संग लगे रहते हैं
रचना - श्री विक्रम सिंह (पु० उपा० ) द्वारा साभार
Monday, November 10, 2008
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