आज का युवा दिग्भ्रमित क्यों है?
आज के समय यदि सबसे गम्भीर समस्या कहीं देखने को मिल रही है तो वह है युवाओं में फैलती दिग्भ्रम की स्थिति। दिग्भ्रम शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है दिक् और भ्रम जिसका शाब्दिक अर्थ होगा दिशा के विषय में भ्रम। यह शब्द उस स्थिति का द्योतक होता है जब हम किसी मोड़ पर खड़े होते हैं और हमें अनेक विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चुनाव करना होता है। यहां जो सबसे ध्यान देने वाली बात है वह यह है कि यह स्थिति तभी उत्पन्न होती है जबकि हमारे पास एक ही कार्य को करने के लिए अनेक विकल्प उपस्थित हों। अब आप कहेंगे कि क्या पहले युवा ही नहीं होते थे या उनके सम्मुख समस्याएं ही नहीं होती थीं या वे किसी और मिट्टी के बने होते थे। इसका जवाब हो सकता है कि पहले के समय में युवाओं के सम्मुख इतने विकल्प नहीं होते थे जितने आज के समय में उपलब्ध हैं। विकल्प होना बहुत अच्छी बात है लेकिन तभी जब उसके बारे में अच्छी जानकारी भी उपलब्ध हो। आज के समय में हमारे अभिभावकों के पास सम्पन्नता आ गयी है लेकिन दुर्भाग्यवश उनके पास समयाभाव हो गया है। यही स्थिति हमारे गुरूजनों के साथ भी देखने को मिलती है। कृपया अन्यथा न लें किन्तु सत्य तो यही है कि हमारे अधिकांश गुरूजनों के पास कोचिंग और अन्य संस्थानों में पढ़ाने के लिए पर्याप्त समय है किन्तु उनका लक्ष्य केवल कोर्स समाप्त कराना ही रह गया है। हम गुरूजनों या अभिभावकों को दोष क्यों दें। यदि युवा अपने अन्दर झांक कर देखे तो उसे दिखाई देगा कि उसके अन्दर अब वह लगन भी नहीं रह गयी है अध्ययन के प्रति। हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि युवा अध्ययन को डिग्री प्राप्त करना समझने लगा है। परीक्षाओं को देखने से तो यही प्रतीत होता है कि पहले जहां युवा पूरी पुस्तक पढ डालता था वहीं आज वह केवल सीरीज में से केवल कुछ प्रश्न पढ़ने में ही रूचि रखता है। ऐसे में वह कैसे ज्ञान की देवी सरस्वती का कृपा पात्र बन सकता है? .........
Monday, March 16, 2009
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3 comments:
this is a big problem for youth but its depends on person to person.
युवा हमेशा ही दिग्भ्रमित होता आया है. क्योंकि उसे रूढियों से भी लड़ना होता है और परम्पराओं का निर्वाह भी करना होता है. अब यह युवा के संस्कारों, उसकी शिक्षा और सोहबत पर निर्भर करता है कि वह किस राह पर चले. हाँ आज के समाज में उसको सही राह दिखाने वाले मार्गदर्शकों की कमी अवश्य है.इस लिए बहुत कुछ उसके स्वयम के विवेक और इच्छा शक्ति पर निर्भर हो जाता है.
हिमांशु जी आप के लेख बहुत ही सारगर्भित हैं.
आस पास की ज्वलंत समस्याओं से उपजे लगते हैं..युवा मन में ऐसी जाग्रति का होना एक अच्छा संकेत है.
एक सुझाव है -
१-अपने ब्लॉग को हिंदी ब्लॉग अग्रीग्रटर जैसे ब्लोग्वानी,चिट्ठाजगत या नारद आदि पर रजिस्टर करीए.आप को अधिकतर ब्लोगों पर यह स्टिक्कर लगे मिल जायेंगे..उन पर क्लिक करेंगे तो आप को उनकी साईट पर ले जायेंगे..हिंदी ब्लॉग बिना अग्रीग्रतेरों की बैसाखी के चलते कहाँ हैं?आप के लेखों को बाकि पाठकों तक पहुँचने का यह एक सबस अच्छा ज़रिया है.
-दूसरा सुझाव यह वर्ड वेरिफिकेशन को हटाईये..यह भी टिपण्णी लिखने वाले को निरुत्साहित करता है.
आप की लेखनी में पैनापन है..बधाई.
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