Friday, September 24, 2010

मुझको कविता नहीं है आती


मुझको कविता नहीं है आती
मैं तो केवल लिखता पाती।

जो कुछ मेरे मन में आता
जो कुछ मेरे मन को भाता
जो है मेरी थाती
मैं तो केवल लिखता पाती।

रस छन्द औ अलंकार का ज्ञान नहीं है
कितनी मात्रा कहां लगेगी
भान नहीं है
जो कुछ भी आ जाता मन में,
लिख देता हूं।
इसी से अपने पागल मन को
बहला लेता हूं।
यह कहने में मुझको देखो
शर्म तनिक न आती
मुझको कविता नहीं है आती
मैं तो केवल लिखता पाती॥

चित्र communities.canada.com से साभार

1 comments:

हरिमोहन सिंह said...

सच है
कविता नहीं है आती
पर जाने क्‍या बात है ये मुझको है भाती
सच कविता नहीं है आती